Sunday, December 24, 2006

निष्कर्ष

(लघु-पटकथा)

इस पटकथा इस पटकथा की संक्षेपिका दूरदर्शन एवं फिल्मों के चर्चित कलाकार श्री राजीव वर्मा ने पहुत पसंद की तथा भोपाल दूरदर्शन से प्रदर्शित कराने की इच्छा व्यक्त की । वित्तीय संसाधनों का अभाव दर्शाते हुए उस वर्ष इस रचना का उपयोग न कर सकने का दुःख दूरदर्शन प्रभारी श्री डी. के. गंजू ने किया था। तत्पश्चात् प्रदेश बंटने से फाईल ठंडे बस्ते में चली गई।


-लेखक
के.पी. सक्सेना ‘दूसरे’




निष्कर्ष
(सीन नं. 1)


(कैमरा एक कॉलेज का बाहरी दृश्य दिखाते हुए अन्दर प्रवेश करता है और कॉलेज के रंगमच पर जाकर स्थिर हो जाता है। स्टेज पर बैनर लगा है “वार्षिक स्नेह सम्मेलन”। नेपथ्य से एक आवाज उभरती है।)

आवाज-विगत तीन दिनों से चल रहे हमारे महाविद्यालय के वार्षिक स्नेह सम्मेलन का आज अंतिम दिन है। आज हम उन कलाकारों व प्रतियोगिताओं की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने प्रथम पुरस्कार जीता है। सबसे पहले आपके सामने हैं कु. रश्मि ।


स्टेज पर प्रकाश फैल जाता है

(रश्मि का नृत्य)


आवाज-और अब आते हैं कॉलेज के होनहार गज़ल गायक मिर्ज़ा असलम बेग । (एक ग़ज़ल के कुछ अंश सुनाए जाते हैं)


आवाज़ –अब बारी है कुमारी रोली, वाद-विवाद प्रतियोगिता में (तालियाँ बजती हैं)

रोली का प्रवेश-


आदि क़ाल से नारी पुरुष की सहचरी रही है। उसने समय-समय पर अपनी जान की बाजी लगाकर अपने परिवार, समाज वे देश की रक्षा की है। त्रेता युग में रानी कैकेयी ने युद्ध क्षेत्र में राजा दशरथ की मदद की। सीता ने राम के साथ बनवास काटा । सतयुग में तारामती ने हरिश्चन्द्र व दमयंती ने राजा नल का विपत्तियों में साथ दिया ।


रजिया सुल्तान, अहिल्या बाई और झांसी की रानी जैसी कई नारियों ने अपने जीवन का उत्सर्ग देश के लिए किया । अगर इन नारियों ने घर से बाहर कदम न निकाला होता तो शायद देश का इतिहास कुछ और ही होता ।


आधुनिक युग में नारी का योगदान किस क्षेत्र में कम है ? वह पुरुष से किसमें पीछे है ? मस्तिष्क, शिक्षा, खेलकूद या बहादुरी ! हमारे देश की सर्वोच्च कुर्सी में बैठकर एक नारी ने ही शासन चलाया है जिसकी योग्यता का लोहा सारा विश्व मानता है। पुलिस, सेना एवं अंतरिक्ष में भारतीय नारी ने अपना सफल दावा बनाया है।


क्या उसने यह साबित नहीं कर दिया कि किसी कार्य का संचालन पुरुष या स्त्री लिंग से नहीं, उसकी योग्यता से होता है। जिसमें योग्यता है वही सफल होगा चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। (तालियाँ)
अब प्रश्न यह है कि फिर क्यों समाज नारी के आगे बढ़ने को घातक मानता है। केवल इसलिए कि हम अभी तक दकियानूसी हैं । ऊपर से चाहे जितना आधुनिक होने का दम भरें और समानता की बातें करें, अंदर से यह कभी नहीं चाहते कि औरत पुरुष की बराबरी करे, आगे बढ़ना तो दूर की बात है। पुरुष भयभीत है कि उसके गृहस्वामी बने रहने का अधिकार और औरत को पैर की जूती बनाकर रखने के दम्भ में कुठराघात हो जाएगा । इसीलिए यह पुरुष प्रधान या देश के लिए नहीं वरन् उन पुरुषों के लिए है जो नारी को दासी बनाकर, उन पर मनमाना अत्याचार कर अपना अहं बरकरार रखना चाहते हैं ताकि नारी कभी भी अपने ऊपर किए गए अत्याचारों के विरूद्ध आवाज बुलंद न कर सके। (तालियाँ)
अब चन्दन खत्री इस विषय के विपक्ष में अपने विचार रखेगें

चन्दन- आइए,सबसे पहले इस बात पर गौर करें कि आखिर यह प्रश्न उठा ही क्यों, कि “क्या नारी के बढ़ते कदम समाज के लिए घातक हैं।” मित्रो, क्या इससे इस बात का आभास नहीं होता कि समाज ने कहीं न कहीं गलत रास्ते पर नारी के बढ़ते हुए कदमों को देखा है ! तभी तो यह आज विवाद का विषय बना है। आज यह प्रश्न सिर्फ इस सदन में ही नहीं, सारे विश्व में उठ रहा है –आखिर क्यों ?


दोस्तो, अगर कैकेयी राजा दशरथ के रथ के पहिये की धुरी बनी, सीता ने राम के लिए महलों का वैभव छोड़ा, झाँसी की रानी पीठ पर पुत्र को बाँध कर फिरंगियों से लड़ी तो उनका उद्देश्य महान था अपने स्वामी की मुसीबत के समय मदद, समाज के लिए एक आदर्श और अपने देश की रक्षा ।


मगर क्या आज भी नारी उन्हीं आदर्शों को लेकर ही घर के बाहर कदम रखना चाहती है ! नहीं। कोशिश करते हैं। अब ये तो किसी से छुपा नहीं है कि लडकियों के लिए कुछ रियायत भी रहती है और ये लड़कियाँ, जो अपनी शिक्षा पूरी कर विवाह होने तक कामर्सियल ब्रेक की तरह नौकरी करती हैं, उस जरूरत-मंद बेरोजगार युवक के लिए कितनी महंगी पड़ती हैं जिसे यदि वह नौकरी मिल जाती तो शायद उसका पूरा परिवार संवर जाता । नतीजा आप अक्सर अखबारों में देखते होगें-कितने युवक नौकरी न पा सकने और परिवार को न पाल सकने या परिवार पर बोझ बने रहने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।


आइए अब शादी शुदा नौकरी-पेशा महिलाओं की बात करें। मैं उन महिलाओं से ही पूछता हूँ कि वे अपनी आय का कितना प्रतिशत अपने परिवार के वास्तविक उन्नति में लगाती हैं ?


अगर वह नौकरी न करती तो अपना समय अपने पति बच्चे व घर सँवारने में लगा सकती थी जो उसका असली धर्म है और उसकी जगह किसी जरूरत मंद को नौकरी मिलती । इस तरह यदि एक महिला घर के बाहर कदम न पढ़ाती तो वह दो परिवारों को सँवारने में सहायक हो सकती थी । (तालियाँ।)


मैं महिलाओं से क्षमा चाहते हुए एक और प्रश्न करना चाहता हूँ - क्या महिलायें इसलिए भी घर बाहर नहीं आ रहीं कि व पुरुषों को इस वात का आभास करा देना चाहती है कि जब वो बाहर का कार्य कर सकती हैं तो पुरुष क्यों नहीं उनकी तरह घर का काम कर सकते ? आप कितने ही ऐसे परिवारों को जानते होंगे जहाँ गृह-कलह का मुद्दा अक्सर यही रहता है। कितने घर रोज बिखर रहे हैं!क्या पहले जब नारी घर में रहती थी इतने परिवार टूटते थे ? और क्या वे परिवार आज से ज्यादा सुखी नहीं थे ? क्या नारी घर में रह कर गृहस्थी की आय नहीं बढ़ा सकती ?


मेर राय में नारी को जैसा कहा और माना गया है कि वह गृह लक्ष्मी है घर की शोभा है, तो उसे वही बन कर रहना चाहिए । जो काम पुरुष के हैं उसे करना चाहिए और नारी को नारोचेत, वर्ना पुरुष व नारी में ईश्वर या प्रकृति ने फर्क किया होता । अतः मेरी राय में नारी को इस अप्राकृतिक असंतुलन से बचना चाहिए ।



सीन-2


(कैमरा घमते हुए उसी कॉलेज के हास्टल के एक कमरे में प्रवेश करता है। चन्दन लैंप लगाए पढ़ रहा है। उसका साथी जैकी अपने बिस्तर पर लेटा किसी फिल्मी पत्रिका के पन्ने पलट रहा है तभी तीसरे साथी मिर्जा का गुनगुनाते हुए प्रवेश-?


“गर तेरा इंतजार ना होता, तेरी गलियों में क्यों गए होते । सिर्फ ऐतबार पर रहे जीते वर्ना हम कब के मर गए होते.....)


मिर्जा -अरे, तू अभी तक पढ़ रहा है।


जैकी -जी, हाँ ! कल जनाब का लास्ट पेपर है ना। सोचते होगें मेरिट में आए तो कालेज में नौकरी पा लेंगे।


मिर्ज़ा -क्यों, क्या इन्हें याद नहीं कि व्ही.सी. का लड़का भी इनके साथ है। उसके होते हुए ये टाप करेंगे,हु; हः !


चन्दन -टाप मैं करूँगा या वी.सी. का लड़का । पर यह तय है कि तुम दोनों में से कोई भी नहीं कर रहे हो।
मिर्ज़ा -नाराज हो गया, मुन्ना । बेटे तू हमारी फिकर छोड़। मैं तो इसलिए नहीं पढ़ता कि मुझे इतनी जल्दी कालेज छोड़कर करना भी क्या है ? गाँव जाकर अब्बा हुजूर की जागीर ही तो सम्हालना है । तो चले जाएँगे जब जी भर जाएगा कालेज से । वैसे भी गाँव की लाईफ में शहर का मजा कहाँ । इसीलिए तो ‘एव्हरी इयर क्लियर इन थ्री इयर्स’ का फार्मूला बना रखा है अपने ने ।


जैकी -और अपना क्या ? सिर्फ डिग्री ही तो लेना है। किस साले को रैंक लाकर काम्पटीशन में बैठना है। फिल्म कम्पनी में मैनेजर बनने के लिए डिग्री ही तो दिखानी है, सो अपनी पूरी तैयारी है।


मिर्ज़ा -वो कैसे मियाँ ?


जैकी -मियाँ भोपाली, परीक्षा पास करने के लिए केवल तीन बातें जरूरी हैं-अकल, नकल और दखल ।


मिर्ज़ा -जरा खुलासा कर यार ।


जैकी एक शर्त पर ! कल रात की पार्टी आप के नाम । अरे कल आखिरी पेपर है ना। हाँ कर दे जानी, जश्न मनाएँगे।


मिर्ज़ा तो सुनो, । नं.1 है अकल । आज कल इतनी मोटी-मोटी टेक्स्ट बुक पढ़ने का ज़माना नहीं रहा। यह युग है शार्टकट का। और देखिये ये रही परीक्षा की कुँजी । साल्वड पेपर्स । इसमें पूरी बुक के सेलेक्टेड 20 प्रश्नोत्तर में दिए गए हैं जिन्हें आप दो-चार बार पढ़िए और परीक्षा कापी में अगल दीजिए।


मिर्ज़ा -हूँ।


जैकी -अब लीजिए नुस्खा नं.-2, नकल । जब आप को परीक्षा हाल में कुछ, भूलने लगे तो इसका सहारा लीजिए । झट निकालिए और पट शुरु हो जाइए ।


मिर्ज़ा -और पकड़े गए तो तीन साल के लिए चले जाइए ।


जैकी -तुम नही समझोगे । नुस्खा नं.3 कब काम आएगा ? ‘दखल’ इस्तेमाल कीजिये, कालेजों में दखल, युनियन में दखल, यूनिवर्सिटी में दखल रखिए और केस दवा दीजिए, टन टड़ंग।


मिर्ज़ा -अबे सबके चाचा थोड़ी न चेयरमैन हैं, तेरे चाचा की तरह ।


चन्दन -तो फिर पढ़िए, मेरी तरह ।


जैकी -वर्ना सो जाइए मेरी तरह । जैकी लाइट बंद कर देता है। सब लेटते ही मैं कि अचानक छोड़ी ही देर में वह फिर लाइट जला देता है और बिस्तर पर बैठ जाता है।)


मिर्ज़ा -अब क्या हो गया मियाँ।


जैकी -मैं सोच रहा हूँ, शिक्षा मंत्री को एक पत्र लिखने की ।


चन्दर - क्या ! (उठ कर बैठ जाता है।)


जैकी हाँ !(सीरियस होकर) जिस तरह सरकार ने रेल में थर्ड क्लास खत्म कर दिया उसी प्रकार शिक्षा विभाग भी थर्ड डिवीजन खत्म कर दे तो मैं आटोमेटिक सेकेंट डिवीजन पास घोषित हो जाऊँगा। क्योंकि पासिंग मार्क तो ले ही आऊँगा ।


(दोनों उस पर पिल पड़ते हैं और वह रजाई में घुस कर जान बचाता है।)



सीन-3


(हाल में परीक्षा चल रही है। जैकी नकल कर रहा है। थोड़ी देर बात एक लेक्चरर पकड़ लेता है।)


जैकी -सर, सिर्फ एक प्रश्न हल कर लेने दीजिए अपने पासिंग मार्क आ जाएँगे, फिर ले जीजिएगा । (लड़के हँसते हैं)


लेक्चरर -चुप रहिये । एक तो नकल करते हैं, ऊपर से बेशर्मी से बहस भी।


जैकी -श्रीमान मैं बहस कहाँ, सही बात कह रहा हूँ । दो प्रश्न तो कर चुका हूँ, एक और कर लेने ..........
लेक्चरर -आप दूसरों को भी डिस्टर्ब कर रहे हैं।


जैकी -मैं ! क्यों भई, मेरे नकल करने से आप लोग डिस्टर्ब हो रहे हैं ?


लड़के -नहीं, बिल्कुल नहीं । (एक सुर में बोलते हैं)


जैकी -मेरी नकल से आप लोगों की कोई आपत्ति,.....


लड़के -बिल्कुल नहीं ।


जैकी -अब देखिए, जब इन्हें आपत्ति नहीं है, तो फिर....


लेक्टरर -यह अनुचित है मैं यह नहीं होने दूँगा ।


जैकी -मान जाइए, श्रीमान । किताबें में भी एलाऊ हैं और विदेशों की नकल हमारा जन्म अधिकार है। (लड़के हँसते हैं।)


एक लड़का-अच्छा आप चुप रहें। मैं अपके साथ सिर्फ यह रियायत कर रहा हूँ कि केस न बनाऊँ । जाइए बैठकर चुपचाप लिखिए । (चेयरमेन के नाम से वह थोड़ा घबरा जाता है।)


जैकी -जब किताब आपके पास हैं, तो मैं क्या ख़ाक लिखूँगा। (क्लास से बाहर निकलता हैतो मिर्जा से मुलाकात होती है ।)


मिर्ज़ा -अब क्या, नुस्खा नं. 3 ‘दखल,’ टंग-टडंग । पर तू यहाँ क्या कर रहा है?


मिर्ज़ा -मैं तो बस यारों का हाल-चाल लेने चला आया ।



सीन नं. -4



(लड़के-लड़कियाँ परीक्षा देकर कॉलेज से निकलते हैं । रोली भी अपनी टू सीटर से सड़क पर आती है तो उसे चन्दन जाता दिखाई पड़ता है। वह रूक कर उससे पूछती है-)

रोली -हेलो ! कैसा रहा पेपर ?


चन्दन -फाइन, और आपका !


रोली -सो-सो। लिफ्ट !


चन्दन -नो थैंक्स ।


रोली -आइये भी ! थोड़ा घूम कर आते हैं।बहाना नहीं, आखिरी पेपर हो चुका है। (चन्दन पीछे बैठ जाता है। दोनों को जाते हुए मिर्जा व जैकी देखते हैं।)


जैकी -क्यों मियाँ भोपाली, कुछ देखा तुमने।


मिर्ज़ा -अमॉ यार, यह तो कभी बच्चू ने बताया ही नहीं।


जैकी -अब तुम्हारा मतलब है वह इश्क भी आप से बताकर करेगा।


मिर्ज़ा -अबे बताकर नहीं करेगा तो करके तो बताएगा।


(चन्दन व रोली नदी के किनारे बैठे हैं। चन्दन कुछ सोच रहा है रोली उसे धक्का देकर बोलती है-)

रोली -ऐ, क्या सोच रहे हो !


चन्दन -कुछ नहीं ।


रोली -कुछ तो।


चन्दन -सोच रहा हूँ वही, जो इस मोड़ पर आकर हर मेरे जैसा युवक सोचता है। पढ़ाई खत्म, लड़ाई शुरू। भूख से लड़ाई, बेरोजगारी से लड़ाई। जिन्दगी जीने के लिए, नौकरी पाने के लिए। बूढ़े बाप और कुंवारी बहन के लिए ।


रोली -अरे तो इसमें नया क्या है। प्रतियोगिताओं में बैठो और अच्छी नौकरी पा लो।


चन्दन -काम्पटीशन ! हः हः । रोली, कालेज से निकलने वाला हर छात्र अक्सर पहले काम्पटीशन में ही बैठना शुरू करता है। सोचता है बस एकदम बड़ा अफ्सर बन जाऊं । अरे, ये कालेज की दुनिया रंगीन कल्पनाओं की दुनिया है। यथार्थ से कोसों दूर । इंसान आकाश में परिंदों की तरह उड़ना चाहता है, आसमान को अपनी बाहों में समेटना चाहता है। किन्तु जब उसे आकाश नहीं मिलता तब वह थका हारा गिरता है ठोस पथरीली ज़मीन पर और फिर ....(मुस्कुराता है।) एप्लीकेशन लगाता है क्लर्की की नौकरी के लिए, जिसे वह पहले बड़ी हेय दृष्टि से देखता था। इसीलिए रोली, मैं ठोस धरती से एकदम ऐसी छलांग लगाना ही नहीं चाहता कि गिरूँ तो निष्प्राण हो जाऊँ।


रोली -छिः! कितने निराशावादी हो तुम ।


चन्दन -तुम मुझे निराशावादी कहो या इलाहाबादी, हकीक़त यही है। अच्छा अब चलें । (मुड़ बदलता है)


रोली -(खड़ी होकर) तुमसे एक रिक्वेस्ट है । रिक्वेस्ट इसलिए कि हमने अभी एक दूसरे के व्यक्तिगत मामलों में दखल देने का हक नहीं अपनाया है ।


चन्दन -ऐसा क्यों कहती हो ? अच्छा बोलो ।


रोली -कल तुम जा रहे हो । पढ़ाई पूरी कर अपनी जिन्दगी की लड़ाई लड़ने । लेकिन एक गुज़ारिश है – अगर तुमने अपने भीतर कभी रोली को महसूस किया या पाया हो तो, उस रोली की कसम, लड़ाई शुरु करने के पहिले हथियार मत डाल देना । तुममें ऐसा क्या नहीं कि तुम सफल न हो, किन्तु प्रयास जरुरी है फिर दोनों चल देते हैं । पीछे से धुन सुनाई पड़ती है –
‘करम किए जा......’

सीन नं.-5



(हास्टल का वही कमरा । मिर्जा व जैकी कुछ मंत्रणा कर रहे हैं तभी दरवाजा खुलने की आवाज के साथ दोनों लपक कर चंदन को धर दवोचते हैं । जैकी उसके सूँघता है फिर नकारात्मक सिर हिलाता है । मिर्जा टार्च जलाकर उसकी कमीज आगे पीछे देखता है । चन्दन दोनों को धक्का देकर –)

चन्दन -ये सब क्या है ?


जैकी -मैं सूँघ रहा था तुम्हें, और ढ़ूँढ़ रहा था एक महक ‘इंटीमेट की, ईव्हनिंग-इन-पेरिस की या..’


मिर्जा -और मैं ढ़ूँढ़ रहा था लम्बा सा बाल, किसी महजवीं का जो तुम्हारे काँधे से लग कर......


चन्दन -क्या बकवास है ।


मिर्जा -बकवास नहीं आशिक की औलाद ! मैं देख रहा हूँ तुम्हारे चेहरे पर इश्क का पहला पाठ याद हो जाने वाली रौनक ।


जैकी -कुछ तो बता ! कैसी गुज़री, ज़ालिम।


मिर्जा -ये ऐसै थोड़ी ना बताएगा। चल रामू को आवाज दें।


(रामू के आने पर) जा फटाफट ले आ । (एक सौ का नोट देता है)


रामू -जाऊँ ?


जैकी जाएगा नहीं तो क्या मिर्ज़ा के साथ बैठकर ग़ज़ल गाएगा । चल फूट।


मिर्जा -अबे रूक। ले (दस रुपये और देता है) वहीं मत बैठ जाना । और सुन ढाबे में बोल देना हम लोगों के लिए खाना रोक लेगा । नहीं तो पीकर जाएँगे तो आलू डालकर अंडा करी बनाएगा, साला । (रामू जाता है।)


चन्दन -ये सब क्या है भई-मिर्जा।


मिर्जा -अरे यार वो कल जैकी को वादा किया था ना । अरे वही ‘नकल’,’अकल’ और क्या...... हाँ, ‘दखल’

चन्दन -(हँसता है) अच्छा-अच्छा । तुम्हारा क्या हुआ जैकी, सुना है.....


मिर्जा -होगा क्या, नुस्खा नं. 2 फेल हो गया ।


जैकी -और तीसरा शुरू हो गया – यानी दखल।


शाम चाचा के पास गया था बंगले में।


चन्दन -क्या बोले ? (तीनों टेबल के तीन ओर बैठ जाते हैं)


जैकी -अरे बोलेगें क्या-वही बुजुर्गों वाला लंबा लेक्चर । तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए वैसा नहीं करना चाहिए । कुछ मेरी इज्जत का ख्याल रखनाथा।


मिर्जा -ठीक ही तो कह रहे थे।


जैकी -क्या ख़ाक ठीक कह रहे थे। मैं पूछता हूँ अगर परीक्षा में एक प्रश्न नकल कर ली तो......


मिर्जा -कौन-सा देश का विकास रूक जाएगा।


जैकी -हाँ !क्या अंतर पड़ गया नकल न करने वालों को । चन्दन तू बता, तुम जितने काबिल हो उतना तो लिखोगे ही उसनें तो मैं दखल नहीं दे रहा। अब मैं अगर नकल करके अपने पासिंग मार्क्स जुटाता हूँ तो तुम्हें क्या तकलीफ है !


मिर्जा -हाँ क्या तकलीफ ?


जैकी -मैं पूछता हूँ कि क्या साल भर की पढ़ाई का मूल्यांकन परीक्षा के महज पाँच प्रश्नों के हल से हो जाता है। यही मापदंड है ना हमारी शिक्षा का । तब ये काम्पटीशन, इंटरव्यू क्यों होते हैं। क्यों नहीं परसेंटेज के अनुसार लोगों को नौकरी दे दी जाती। क्यो हमें डिग्रियाँ लेकर दर-दर भटकना पड़ता है। एक ग्रेजुएट कलेक्टर बनता है दूसरा बाबू और तीसरा.......


मिर्जा -(ताली बजा कर), वाह वाह ! क्या बात है।


चन्दन -इसीलिए तो परीक्षा प्रणाली में परिवर्तन लाया जा रहा है।


मिर्जा -अमां, कद्दू लाया जा रहा है। आजादी की आधी सदी निकल गई और हम अभी तक यह तय नहीं कर पाए कि हमारी शिक्षा प्रणाली कैसी हो।


जैकी -चल छोड़ यार ! अगला पैग बना। हाँ तो हम अपने मूल विषय पर आ जाएँ । चन्दन, बता ना यार, कैसी गुजरी।


मिर्जा -हाय, क्या रंगीन शाम रही होगी। हम, तुम और वो....


जैकी -वो कौन वे !


मिर्जा -वो यानी कि दरिया का किनारा(मुस्कराता है)


चन्दन -तुम दोनों को चढ़ गई है।


मिर्जा -चल-चल ज्यादा मस्का मत लगवा।


चन्दन -नहीं मानोगे।(दोनों सर हिलाते हैं) अच्छा तो सुनो, उसने गाड़ी रोकी-मैं बैठ गया। हम नदी के किनारे पहुँचे-मैं उतर गया। उसने कहा आओ रेत में बैठें-हम बैठ गए।


दोनों -फिर !


चन्दन -मैंने कहा उठो-वह उठ गई। उसने गाड़ी स्टार्ट की हम चल दिए। रास्ते में रेस्ट हाउस आया। मैंने कहा रूको-वह रूक गई ।


मिर्जा - फिर


चन्दन - मैं गाड़ी से उतरा फिर वह.....


जैकी -गाड़ी से उतरी। (जैकी ने कुर्सी एकदम चन्दन के पास खींच ली)


चन्दन -नहीं, वह गाड़ी से नहीं उतरी। मैंने कहा फिर मिलेंगे-वह मुस्कुराई और आगे बढ़ गई।


जैकी -धत तेरे की । क्लाइमेक्स में आकर कट कर दिया।


मिर्जा -मिया से भी कोई इश्क है। इस गति से चलोगे तो शादी की हाँ कराते तक सदी बदल जाएगी।


जैकी -बोर कर दिया। चल मिर्जा तू कुछ सुना फड़कती-सी चीज । और ले फिनिश कर ।


मिर्जा -अरे हम क्या सुनाये यारों-सुनों जीरज ने क्या कहा है-


“बादलों से सलाम लेता हूँ,
वक्त के हाथ थाम लेता हूँ,
मौत मर जाती है पल भर के लिए-
जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ।”

चन्दन -बाह,क्या बात कही है।


चन्दन -अच्छा मिर्जा, तू घर कब जाएगा?


मिर्जा -घर ! मैं तो नहीं जा रहा, मैं जाऊँगा अलीगढ़, मामू के यहाँ। और जुलाई में वापस जाऊँगा इसी दड़बे में।


चन्दन -तू घर क्यों नहीं जाता।


जैकी -हाँ मियां, यह तो तूने कभी बताया ही नहीं।


मिर्जा -छोड़ो यारो।


जैकी -छोड़ें कैसे ? बता नहीं तो......


मिर्जा -नहीं तो क्या करेगा, बोल।


जैकी -नहीं तो....नहीं तो, अपने बिस्तर पर चला जाऊंगा। (तीनों हँसते हैं, फिर सहसा खामोश हो जाते हैं।)


चन्दन -जैकी,हमें किसी के ज़ाती मामलों में दखल देने का कोई हक नहीं पहुँचता।


जैकी -नहीं....बिलकुल नहीं पहुँचता ।


मिर्जा -अमां, भाड़ में गए ज़ाती मामलें, नहीं मानते तो सुनों । मगर फिर मत कहना कि नशा खराब कर दिया।


जैकी -बिल्कुल नहीं, (लुढ़कने लगता है)


मिर्जा -मेरे गाँव रसूलपुर में अब्बा की अच्छी खासी जागीर है। उनका एक बफादार कारिंदा है - रहीम, जिसे हम लोग रहीम चाचा कहते हैं। रहीम चाचा की मेरी हमउम्र (फ्लेश बैक में सीन दिखाए जाते हैं) एक लड़की थी - नाम था सलमा। सलमा व मैं बचपने से साथ खेले व बड़े हुए । सलमा अक्सर घर आकर अम्मीजान का हाथ बटाया करती थी । न जाने कब और कैसे हम दोनों एक दूसरे को चुपचाप चाहने लगे। हमने साथ-साथ जीने मरने की कसमें खायीं और पढ़ाई खत्म होते ही शादी कर लेना तय कर लिया । छुट्टियाँ हम लोग साथ बिताते और कालेज खुलने पर मैं उसकी याद लिए यहाँ आ जाता अगली छुट्टियों में मिलने के वादे के साथ। वह मेरा बी.ए. का अन्तिम वर्ष था। हमने तय किया था कि इस बार छुट्टी में जब घर आऊँगा तो अम्मी से निकाह की बात करूँगा।


परीक्षा खत्म हुई, मैं घर जाने की तैयारी कर रहा था कि अब्बा हुजूर का खत मिला। लिखा था कि मैं घर आने की बजाय सीधा अलीगढ़ पहुँच जाऊँ, मामू की लड़की की शादी में शामिल होने, क्योंकि अम्मी की बीमारी की वजह से वे दोनों नहीं पहुँच सकते। सलमा के कारण हालांकि मैं कहीं नहीं जाना चाहता था फिर भी जाना पड़ा । एक सप्ताह अलीगढ़ रहने के बाद जब मैं गाँव पहुँचा तो पता चला कि मेरा घोंसला बनने के पहले ही उजड़ गया।


चन्दन -आखिर हुआ क्या ?


मिर्जा -हमारे एक नौकर ने, जो हमारी मुहब्बत से वाकिफ था बताया कि न जाने कैसे अब्बा हुजूर को इस इश्क की खबर हो गयी थी और चूँकि हमारा व सलमा का मेल जोल उनकी शानो शौकत के माफिक न था, उन्होंने रहीम चाचा को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वे सलमा का निकाह उसके मामू जात भाई से, जो नैराबी में काम करता है, कर दें। निकाह का सारा खर्च वे देने को तैयार हो गए । रहीम चाचा ने इसे अब्बा की मेहरवानी समझा और उस लड़के से सलमा का निकाह करा दिया।


जैकी -पर सलमा कैसे इसके लिए तैयार हो गई ?


मिर्जा -चूँकि हम लोगों ने एक दूसरे से वादा किया था कि मेरी पढ़ाई समाप्त होने तक हम यह बात किसी से न बतायेंगे, उसने अपनी जुवान न खोली और कुर्बानी के लिए तैयारी हो गई। इसीलिए अब्बा ने मुझे उन दिनों अलीगढ़ भेज दिया ताकि मुझे कुछ मालूम न हो पाये ।


जैकी -अमां क्या अलिफ लैला की कहानी लेकर बैठ गया । स्टोरी में कुछ थ्रिल ला। (चन्दन ने उसे डांटा, मिर्जा मुश्किल से मुस्कुराया)


चन्दन -आगे बताओ मिर्जा, फिर......


मिर्जा -होने को क्या बचा था । सलमा निकाह के बाद नैरोबी चली गई, किंतु दुःख तो इस बात का है कि वहाँ भी सुखी न रह सकी।


चन्दन -क्यों !


मिर्जा -सलमा के पति ने पहले से ही एक औरत नैरोबी में रखी हुई थी। सलमा से यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और एक दिन उसने वहीं जहर खा लिया।


जैकी -उफ।


मिर्जा -बस तभी से मुझे अपने अब्बा जान से नफरत हो गई। इसलिए छुट्टियों में भी घर जाना पसंद नहीं करता और चाहता हूँ कि यह पढ़ाई कभी खत्म न हो ताकि कभी गाँव न जाना पड़े क्योंकि मुझे पता है कि गाँव सलमा के साथ बितायें लम्हें मुझे चैन न लेने देंगे।



तीनों बहुत गमगीन हो जाते हैं और अपने-अपने बिस्तर पर लुढ़क जाते हैं। मिर्जा को नींद नहीं आती। वह करवट बदलता रहता है धीरे-धीरे एक गाने की आवाज उभरती है-

जूही महकी, उपवन चहका,
अमराई में शाम हो गई।।
पल भर मिलने ही पाई थी,
चर्चा कितनी आम हो गई। चर्चा कितनी....
रोप दिया जो पौधा तुमने,
मेरे इस सूने आँगन में।
जग वालों से छुपा न पाई,
गली-गली बदनाम हो गई।। चर्चा कितनी....
यादों का बस लिए सहारा,
रही सींचती प्यार तुम्हारा।
पथराई अखियाँ, तब जाना,
संबंधों की शाम हो गई।. चर्चा कितनी....


सीन नं. -6


(बैरिस्टर राजेश्वर दयाल का बंगला। दयाल साहब बैठक में बैठे अखबार पढ़ रहे हैं तभी टेलीफोन की घंटी बजती है।)

मिं.दयाल-हेलो ! राजेश्वर दयाल।
.......(उधर की आवाज सुनाई नहीं देती)
आपको किससे बात करना है।
अच्छा ! होल्ड कीजिये (आवाज़ देते हैं)
रोली। तुम्हारा फोन ।


रोली -किसका है पापा !(फिर खुद ही फोन उठाकर।) हेलो कौन !


.......रोली जी ! मैं चन्दन।


रोली -(चहक कर) ओह चन्दन ! (दयाल सा. अख़बार से एक निगाह उठाकर रोली की ओर देखते हैं तो रोली जीभ दबा कर मुँह दूसरी ओर कर लेती हैं।)!!


चन्दन -तुम्हें मालूम है ना कि आज रात मै घर जा रहा हूँ । मै चाहता हूँ कि जाने के पहिले तुमसे एक और मुलाकात हो जाये । क्या ख्याल है ?


रोली -ख्याल तो बड़े नेक है। बोलिए कहाँ ?


चन्दन -दोपहर 12 के लगभग, ‘अपेरा’ में मिलो।


रोली -और कुछ।


चन्दन -नहीं तो.........


रोली -बोलो ना।


चन्दन -बात ये है कि मेरे दोनों रूम मेट्स भी तुम से मिलना चाहते हैं। उड यू माइंड ?


रोली -सरटेनली नाट-आई एम रीचिंग इन टाइम। (रोली फोन रखकर जाने लगती है। तो दयाल साहब पूछते हैं किसका फोन था बेटी।)


रोली -डैडी, हैं एक चन्दन खत्री। कालेज का होनहार मगर दकियाकनूसी लड़का।


दयाल -‘होनहार मगर दकियानूसी !’ मैं कुछ समझा नहीं।


रोली -हाँ डैडी आज के जमाने में भी वह जाने किस युग की बात करता है। कहता है कि स्त्री को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए। वह तो गृह लक्ष्मी है, घर की शोभा है, उसे अपना समय पति, बच्चों व घर को संवारने में लगाना चाहिए । नारी नौकरी प्रायः अपने पति का पुरुषोचित अहं तोड़ने के लिए करती हैं। बराबरी का दर्जा इसलिए चाहती है कि पति उस पर हुक्म न चला सके।


दयाल -विचार तो उसके बड़े अच्छे हैं। किसी दिन घर बुलाओ तो हम भी मिलें।


रोली -डैडी-आज रात वह घर जा रहा है इसीलिए तो दोपहर में उससे मिलने जाना है, ओह !(जीभ दबाती है, डैडी मुस्कुराते हैं।) मैं जाऊं डैडी ?


दयाल -तू उससे हाँ तो पहले ही कर चुकी है अब मुझसे इजाजत मांग रही है –शैतान ।
रोली हँस कर भागती है।)



सीन नं. 7



(कैमरा अपेरा में चारों ओर घूमता हुआ उस टेबल पर रुकता है जहाँ तीनों दोस्त बैठे हैं। मिर्जा जम्हाईयां ले रहा है। जैकी साथ लगी खिड़की से बार-बार बाहर की ओर देखता है तभी उसे रोली आती दिखाई पड़ती है।)

जैकी -जानी, कयामत आ रही है।


मिर्जा -बेटे, हम कयामत नहीं, जिन्दगानी का इन्तजार कर रहे हैं।


(रोली उनकी टेबल के पास पहुँचती है।)


चन्दन -रोली, इनसे मिलो। ये हैं मिर्जा साहब, मेरे रूम पार्टनर।


जैकी -वनली बन थर्ड –जीहाँ, बाकी टू थर्ड हम दोनों हैं । (रोली मुस्कुराती है।)


चन्दन -ला फैकेल्टी में ........


जैकी -रिसर्च कर रहे हैं। जी हाँ....एव्हरी इयर, इन थ्री इयर्स। क्यों मिर्जा में गलत बोला क्या ? (सब हँसते है इतने में वेटर आर्डर ले जाता है।)


चन्दन -(जैकी की ओर इशारा करके) और आप है मिस्टर जैकी.......


मिर्जा -और भावी फिल्म डायरेक्टर।


रोली -क्या सचमुच !अच्छा बताइये पहली फिल्म किस पर बनायेंगें।


जैकी -मैडम इरादे तो बड़े बुलंद हैं देखिये होता क्या है ! कल तक मैं जरूर प्लाट तलाश रहा था लेकिन कल रात ही एक ऐसी जानदार स्टोरी मुफ्त में मिल गई कि कभी फिल्म बना सका तो सबसे पहले उसी पर बनाऊंगा। (मिर्जा की ओर देखता है)



मिर्जा जरा नर्वस होता है तभी वेटर सामान लगा देता है, खाकर मिर्जा व जैकी जल्दी उठ जाते हैं।)

जैकी -अच्छा हम और मिर्जा जरा प्रेस तक जा रहे हैं, देखें इनकी किताब का क्या हुआ। (चन्दन को आँख मारता है) अच्छा मैटम, जिन्दा रहे तो जल्दी मिलेंगे । परस्पर दुआ सलाम के बाद दोनों चले जाते हैं।


रोली -आपके दोनों मित्र काफी दिलचस्प है। मिर्जा जी कुछ लिखते हैं क्या ?


चन्दन -उसकी एक किताब छप रही है- ‘बिखरी नज्में’ । लेकिन वे वहाँ गए नहीं है। हमें अकेले छोड़ने का बहाना किया है। (रोली थोड़ा शरमाती है।)


रोली -चन्दन, मेरे डैडी तुमसे मिलना चाहते थे।


चन्दन -डैडी ! उन्हें मेरे बारे में कैसे मालूम ?


रोली -सुबह तुम्हारा टेलीफोन आया था ना !


चन्दन -ओह ! (राहत की साँस लेता है।)


रोली -मैंने उन्हें सब बता दिया।


चन्दन -सब, सब क्या (चौंकता है।)


रोली -यही कि तुम मेरे कॉलेज में हो । एम. काम. के होनहार छात्र । नारी के प्रति तुम्हारे क्या विचार हैं वगैरह वगैरह ....


चन्दन -(आश्वस्त होकर) अच्छा ! लगता है मेरे विचार तुम्हें पसंद नहीं आये।


रोली -अच्छा चन्दन, एक बात बताओगे ?


चन्दन -पूछ कर देखो।


रोली -देखो, न तो मैं घुमा-फिराकर कर बात करना जानती, और ना ही तुमसे गोल-मोल जवाब चाहती । हो सकता है मेरी बात सुनकर तुम सोचो कि मैं कैसी लड़की हूँ फिर भी मै जानना चाहती हूँ कि अगर तुम्हारे सामने कभी मुझसे विवाह करने का प्रस्ताव आये तो तुम क्याक जवाब दोगे ।


चन्दन -रोली, मैं तुम्हारी बेवाकी से चकित होने के साथ खुश भी हूँ क्योंकि अगर यह प्रश्न मुझे तुमसे करना होता तो मैं शायद काफी वक्त या वर्षों लगा देता।


लेकिन इसका उत्तर इतना सरल नहीं है. बाहर टहलते हुए बातें करेंगे ।

(पेमेंट कर के बाहर निकलते हैं।)


चन्दन -रोली, यह बात सच है कि यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी यदि मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में पाऊंगा । लेकिन इसमें पहली अड़चन तो है हमारे परिवारों की असमानता, तुम बैरिस्टर साहब की एकलौती पुत्री और मैं एक रिटायर्ड हेड क्लर्क का लड़का । और दूसरी महत्वपूर्ण अड़चन है मेरी बेरोजगारी। रोली तुम शायद नहीं जानती कि किन मुसीबतों में रहकर मैंने पढ़ा मेरे पिता मुझपर आँख लगाये बैठे हैं कि कब मैं कमाने लायक होऊं और कब घर की माली हालत सुधरे। बहन का विवाह कर सकूँ। और घर को रहन से छुड़ा सकूँ।

ऐसी स्थिति में मुझे अपने विवाह की बात सोचने से भी अपराध बोध होता है। अभी मेरा पहला ध्येय है-नौकरी प्राप्त कर परिवार को आर्थिक सुरक्षा देना। बहन का विवाह व घर को छुड़ाना ।(कुछ रुककर ) मेरे एक बात मानोगी रोली ? क्यों न हम अपने संबंध एक स्वस्थ मैत्री तक सीमित रखें ! क्या स्त्री-पुरुष अच्छे दोस्त नहीं बन सकते !


रोली -चन्दन में तुम्हारी भावनाओं को समझती हूँ और कभी नहीं चाहूंगी के तुम अपने कर्तव्यों के विमुख होकर अपने माँ बाप के अरमानों पर पानी फेर दो। (रूककर ) अच्छा चलो हम एक समझौता कर लें।


चन्दन -समझौता (चौंकता है)


रोली -हाँ, समझौता। जब तक तुम्हें नौकरी नहीं मिलती और तुम अपनी जिम्मेदारियों से निश्चिंत नहीं हो जाते हम लोग बस अच्छे मित्र रहेंगे, केवल मित्र । और जिस दिन तुम्हें ऐसा महसूस हो कि अब रोली मित्र नहीं पत्नी के रूप में ज्यादा उपयुक्त है, हम लोग विवाह कर लेंगे।


चन्दन -(भावावेश में रोली का कंधा पकड़कर) यह उचित नहीं है। यह एक लंबा और अंधा सफर है जिसमें कितना समय लगेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता-हो सकता है सारी उमर गुजर जाये और मंजिल न मिले । तब...तब क्या मैं स्वयं को माफ कर पाऊंगा।


रोली -अरे, तुम इतने भावुक क्यों हो रहें हो । मैंने यह कब कहा कि मैं तुम्हारे इंतजार में सारी उम्र कुंवारी बैठी रहूँगी। जिस दिन भी तुमसे बेहतर लड़का खोज लिया गया मैं शादी कर लूंगी पर अपनी दोस्ती नहीं टूटेगी । अब तो खुश हो ना। (मुस्कुराती है मगर बहाने से अपनी नम आंखें पोंछ लेती है।)


चन्दन -बस-बस रोली, तुमने ऐसा कहकर मुझे उबार लिया।


रोली -लेकिन मेरी भी एक शर्त है। तुम भी रोली के नाम की माला मत जपते रहना । उपयुक्त प्रस्ताव आने पर अपना विवाह कर ही लेना। शादी में बुलाओगे तो आऊँगी भी। दोस्त जो ठहरी। बोलो-समझौते की सारी शर्तें मंजूर हैं. (हाथ आगे बढ़ती है।)

दोनों की आँखें डबडबा जाती हैं। चन्दन धीरे से अपना हाथ असके हाथ के ऊपर रखकर थप-थपा देता है तभी दूर कहीं रेडियों बजता है सुनाई देता है-
‘जिन्दगी का सफर ......


सीन नं. 8



कैमरा एक गाँव को फोकस करता है।

(चन्दन का गाँव । उसके पिता मुंशी देवीदीन खत्री बाहर बैठे हुक्का पी रहे हैं । तभी एक कार आकर दरवाजे पर रूकती है और उसमें से उतरते हैं-राजेश्वर दयाल। मुंशी जी हड़बड़ा कर खड़े हो जाते हैं।)

दयाल- -आप ही चन्दन के पिता खन्नी जी हैं।


खत्री जी -जी हाँ, मगर मैंने आपको पहचाना नहीं।


दयाल -(हँस कर) पहचानेंगे कैसे । हम पहली बार जो मिल रहे हैं। मैं राजेश्वर दयाल ,शहर में वकालत करता हूँ । आपका लड़का चन्दन और मेरी बेटी रोली एक ही कालेज में पढ़ते हैं।


खत्री -आइये, आइये । तशरीफ लाइये । कहिये क्या हुक्म है। (बैठते हैं।)


दयान -दरसल मैं अपनी बेटी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आया हूँ ।


खत्री -देखिये, दयाल साहब में बहुत साफ कहना चाहता हूँ । जात-पात तो खैर मैं भी ज्यादा नहीं मानता अतः उसकी तो कोई अड़चन नहीं है, लेकिन आपकी इतनी बड़ी कार देखकर लगता है कि आप काफी बड़े आदमी है और मैं ठहरा रिटायर्ड हेडक्लर्क। हमारे आपके परिवार का तालमेल जमेगा नहीं । संबंध हमेशा बराबरी वालों के साथ शोभा देते हैं और निभते हैं।


दयाल -आप मुझे शरमिंदा कर रहे हैं मेरा जो कुछ है सब मेरी बेटी का है ।


खत्री -देखिये हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। चन्दन की नौकरी अभी लगी नहीं। बेटी का विवाह है, लेकिन आपकी इतनी बड़ी कार देखकर लगता है कि आप काफी बड़े आदमी है और मैं ठहरा रिटायर्ड हेडक्लर्क । हमारे आपके परिवार का तालमेल जमेगा नहीं। संबंध हमेशा बराबरी वालों के साथ शोभा देते हैं और निभते हैं।


दयाल -आप मुझे शरमिंदा कर कहे हैं। मेरा जो कुछ है सब मेरी बेटी का है।


खत्री -देखिये हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। चन्दन की नौकरी अभी लगी नहीं। बेटी का विवाह करना है अच्छा लड़का आजकल बगैर दहेज के मिलता नहीं। फिर आपसे क्या छुपाऊं ये मकान भी गिरवी है।
दयाल -मेरी एक ही बेटी है। मेरी सारी जायदाद उसी की तो है। आप बस.....


खत्री -आप शायद मेरी मजबूरी नहीं समझ रहे ।


दयाल -मैं समझ रहा हूँ । आप हाँ भर कर दीजिए । आपकी बेटी का विवाह भी मैं करूंगा और मकान भी छुड़वा दूँगा ।


खत्री -मेरा मतलब यह नहीं था मैं तो .......


दयाल -देखिये मैं जो कुछ करूँगा आपके लिए नहीं, अपनी बेटी के लिए करूँगा । आप इंकार मत करिये ।


खत्री -(मन ही मन खुश होते हुए) आपने तो मुझे उलझन में डाल दिया । खैर ! जब लड़का-लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तो हम क्यों बीच में आयें । उनकी खुशी, हमारी खुशी ।


सीन नं. – 9


(कार तेजी से कम्पाउन्ड में घुसती है । दयाल साहब का कार से लिकलकर रोली की माँ को आवाज देते हुए अंदर प्रवेश ।)

रोली की माँ-काया बात है, क्यों इतना चिल्ला रहे हो ।


दयाल -अरे इतनी दूर से आ रहा हूँ ......


माँ -तो काया आपके लिए आरती सजाकर दरवाजे पर खड़ी रहती । कौन-सा तीर मार आये । अरे, किसी हत्यारे को फाँसी से छुड़ा लाये होगें ।


दयाल -उफ तुम्हें तो ... । रोली की शादी तय कर आया हूँ। (आवाज सुनकर रोली अपने कमरे से निकल कर आड़ में खडीं हो जाती है ।)


माँ -सच ! कैसा है लड़का ।


दयाल -लड़का ! वो तो मैंने नहीं देखा ।


माँ लो सुनो !लड़का देखा नहीं और शादी तय कर आये । मैं सोचती हूँ तुम कैसे वकालत करते होगे।
दयाल -अरे मैंने नहीं देखा तो क्या, रोली ने देखा है। उसकी पसंद अपनी पसंद। बेटी भी तो वकील की है कोई ऐसा वैसा लड़का थोड़ी न पसंद किया होगा।


माँ -हे भगवान ! अच्छा, करता क्या है ?


दयाल -कुछ नहीं ।


माँ -क्या....(माथे पर हाथ ठोंकती है)


दयाल -अरे भई अभी तो पढ़ाई खत्म की है । कहीं न कहीं लग ही जावेगा । और कौन हम कल ही विवाह करने जा रहे हैं, वो तो उसकी नौकरी मिलने के बाद ही करेंगे।


माँ -चलो जो किया ठीक। अच्छा ये बताओ कुछ लेन-देन......


दयाल -अरे हाँ ! चन्दन के पिता कहने लगे मुझे पहले लड़की की शादी करना है घर बनवाना है और चन्दन की नौकरी अभी लगी नहीं है ऐसे में ......


माँ - क्या बात टाल दी ?


दयाल -टल ही गई थी फिर मैंने सोचा-एक ही बेटी है उसकी पसंद का लड़का है तो देख लेंगे। वो भी खुश और बेटी भी। आखिर यह सब किसके लिए हैं?

तभी रोली आड़ में से बाहर आ जाती है उसे देएखकर दयाल बोलते हैं-आओ बेटी तुम्हें एक सरप्राइज दें।

रोली -(क्रोध में) मैं आपकी बातें सुन चुकी हूँ-मैं शादी नहीं करूँगी।


माँ -क्या !शादी नहीं करोगी ?


रोली डैडी, मैं आपसे कोई चीज नहीं छुपाती। क्या मैंने आपको अपने व चन्दन के समझौते की बात नहीं बताई थी।


डैडी -क्यों नहीं ! इसीलिए मैंने तुम्हारे समझौते का ख्याल रखते हुए यह विवाह तय किया है। तुम्हारे चन्दन की तीन ही समस्यायें थी-बहन का विवाह, घर और नौकरी । तो पहली दो समस्यायें तो मैंने हल कर दीं । जो रुपया मैंने तुम्हारी शादी के लिए जोड़ रखा है उससे चन्दन की बहन की शादी भी हो जायेगी और घर भी उऋण हो जाएगा । रहा सवाल चन्दन की नौकरी का, तो विवाह तो तुम्हारा तभी करेंगे जब वह नौकरी पा जाएगा । अब बोलो कहाँ मैंने तुम्हारी शर्तों को तोड़ा।


रोली -तोड़ा है, डैडी । शर्तों को नहीं मेरे उसूलों को।


डैडी -उसूलों को !


रोली हाँ डैडी, मैं ऐसे परिवार में शादी नहीं करूंगी जहाँ दहेज लिया व दिया जाता है ।


डैडी -लेकिन यह तो मैं अपनी स्वेच्छा....अपनी सामर्थ्य से दे रहा हूँ । उन्होंने नहीं माँगा।


रोली -माँगने के भी अपने-अपने ढंग होते हैं। डैडी आप तो समर्थ हैं, आपने तो दहेज दे दिया लेकिन उन सब लड़कियों का क्या होगा जिनके माँ बाप दहेज नहीं दे सकते। जब तक आप जैसे, लड़के के खरीददार समाज में रहेंगे ऐसी लड़कियों का हश्र जानते हैं क्या होगा ? आजन्म कुंवारापन... आत्महत्या या फिर दहेज के भेड़ियों के हाथों मौत । इसीलिए मैंने प्रण किया है कि वहीं शादी करूंगी जहाँ दहेज न लिया जाय । और जब तक हम और आप जैसे समर्थ लोग दहेज का विरोध नहीं करेगें, खरीददारों का सामाजिक बहिष्कार नहीं करेगें, समाज से दहेज के दानव का नाश/पलायन नहीं होगा।


डैडी -लेकिन बेटी ये तो मैं अच्छे कार्य के लिए ...आखिर उनकी बेटी की शादी के लिए ही तो .......


रोली -नहीं डैडी नहीं । यही कड़ी तो हमें समाप्त करनी है। अपने लड़के को बेंचना फिर उस पैसे से दूसरे का लड़का खरीदना ताकि अपनी लड़की की शादी हो जाय । लेकिन उन लड़कियों का क्या होगा जिनके कोई जवान भाई न होगा या भाई बिकाऊ न होगा ? इस समस्या का ये हल नहीं है जो आपने सोचा है - हल है- जागरूकता। जब तक हर लड़का व लड़की स्वयं दहेज का विरोध नहीं करेगा लड़के बिकते रहेगें समाज में बेमेल विवाह होते रहेगें । हमें स्वयं ऐसे लोगों का धिक्कारना है, उन्हें सजा दिलाना है, सामाजिक बहिष्कार करना है जो अपनी लड़कियाँ बेचते या लड़के खरीदते हैं। (रुक कर-एकएक शब्द चबाकर)डैडी मैं यह शादी नहीं करूँगी। आप उन्हें साफ लिख दीजिए कि मेरी ऐसे परिवार की बहू बनने से इंकार करती है जहाँ बेटी नहीं दहेज तौला जा रहा है।


डैडी -लेकिन चन्दन से........


रोली -मैं चन्दन को जितना जानी हूँ उसके अनुसार वह अपने पिता का समर्थक नहीं होगा और यदि हुआ तो अपने उसूल के लिए एक क्या हजार चन्दन छोड़ सकती हूँ। (कहकर अपने कमरे में भाग जाती है।)



सीन नं. -10


(चन्दन मस्ती में गुनगुनाता हुआ गाँव की पगडंडियां से गुजरता हुआ घर पहुँचता है। दरवाजे पर ही पिता जी मिल जाते हैं। चन्दन पैर छूता है फिर कहता है )

चन्दन -पिता जो आपके आशीर्वाद से मुझे नौकरी मिल गई।


पिताजी -जीते रहो, कहाँ ?


चन्दन -शहर में एक ‘राहुल कंस्ट्रक्शन’ कंपनी है उसमें असिस्टेंट की पोस्ट है। पगार अभी कम है किंतु आगे चांस है।


पिता -अरे ठीक है बेटे। आज कल बिना सिफारिश नौकरी मिलती कहाँ है। हाँ, शहर से कोई दयाल साहब आये ते । तुम्हारे रिश्ते की...


चन्दन -रिश्ता ! पिता जी आप से पहले ही कह चुका हूँ कि जब तक शालिनी की शादी नहीं हो जाती और घर नहीं छूट जाता मैं शादी नहीं करूंगा।


पिता -अरे तू पूरी बात तो सुन । सब ठीक हो गया।


चन्दन -ठीक हो गया, वो कैसे ? (चौंकता है)


पिता -दयाल साहब एक बड़ी सी कार से आये थे। बोले मैं आपके बेटे का रिश्ता अपनी बेटी से तय करने आया हूँ।


चन्दन -पापा आप.....


पिता -लेकिन मैंने उन्हें साफ मना कर दिया तो वे कहने लगे देखिये मैं बड़ी आशा से आया हूँ । मैंने आज तक जो कमाया वह सिर्फ अपनी बेटी के लिए। आप हाँ तो करिए । शालिनी की शादी हम करेंगे और यह मकान भी हम छुड़ायेगें । मैंने 4-5 लाख का खर्च बताया तो झट तैयार हो गए । ठीक है ना बेटे 2 लाख तो शालिनी के लिए रामपुर वाले मांग क रहे हैं और बाकी यह घर....


चन्दन -दहेज, दहेज, दहेज। आप लोगों को यह क्या हो गया है। लड़के-लड़कियों को खरीदने बेचने का धंधा बना लिया है। एक लड़के को बचेंगे, दूसरे को खरीदेगें । हम लोग जानवर है या आपकी जायदाद। जिसे जब भी जी चाहे जहाँ बेच दिया।(चन्दन अब तक आवेश में आ गया था अचानक चिल्ला उठा...।) पिताजी मैं बिकूंगा नहीं चाहे आजीवन कुंवारा रहूँ। और शालिनी की शादी भी ऐसी जगह नहीं करूंगा जहाँ दहेज के लोभी रहते हैं।


पिता -तो शालिनी भी तुम्हारी तरह आजन्म कुंवारी रह जाये।(अब वे क्रोध में थे)


चन्दन -पिता जी, क्या आप चाहते हैं कि शालिनी को वहाँ भेज दें जहाँ विवाह मात्र दहेज न देने पाने के कारण रूका हुआ है। मान लीजिए विवाह के बाद फिर उन्होंने मुँह फाड़ा तो फिर आप दयाल साहब के पास रुपये मांगने जाएंगे । या स्टोव फटने जैसे किसी हादसे का इंकजार करेगें।


पिता -लेकिन


चन्दन -आपने यह कैसे सोच लिया कि बिना दहेज के शादी हो ही नहीं सकती। क्या आज का हर नवयुवक इतना गिर गया है कि बिना दहेज का धन पाये अपनी गृहस्थी नहीं चला सकता। क्या ऐसे सारे युवकों का खून पानी हो चुका है जो आगे आकर दहेज का विरोध करें और कहें कि हम विवाह लड़की से करेगें ना कि उसके बाप के दहेज से ।


पिता -बेटा तू कल्पना की उड़ानें भर रहा है। पैसे की.......


चन्दन -नहीं पिता जी अब वो दिन दूर नहीं जब ये कल्पनाएँ साकार होंगी।आप जानते हैं, मैं शालिनी की बात एक जगह तय करके आ रहा हूँ बिना दहेज के ।


पिता -अरे लड़का लंगड़ा-लूला होगा। (चिढ़कर बोलते हैं।)


चन्दन -जी नहीं । लड़का न लंगड़ा है ना लूला। जूट मिल में काम करता है। एक पैसा दहेज नहीं लेगा लेकिन लड़की देखकर ही शादी करेगा । कल वो लोग आ रहे हैं।


पिता -सच ।


चन्दन -हाँ !मगर आप दयाल साहब को मेरे विवाह का इंकार लिख दीजिए । (चला जाता है)



सीन नं. 11



(रोली के घर की घंटी बजती है। पोस्टमैन नौकर को डाक देता है। नौकर मि.दयाल को दो पत्र देता है । एक रोली का, एक उनका। दयाल साहब रोली का खत उसे देते हैं और चला अपना स्वयं पढ़ते हैं दोनों अलग-अलग सोफे पर पैठे हैं।)


रोली अपना खत पढ़ती है-


‘रोली’
पिता जी से ज्ञात हुआ कि तुम्हारे डैडी हमारा रिश्ता लेकर आये थे । मुजे अफसोस है कि इन दोनों बुजुर्गों ने आपस में दहेज तय कर लिए जिसके मैं सख्त खिलाफ हूँ अतः मैंने विवाह से इंकार कर दिया । आशा है कि तुम मेरे जज्बातों की कद्र करोगी और अपने डैडी को भी समझाओगी। हम यह शादी न कर एक मिसाल कायम करेगें अपने उसूलों की और वायदे के अनुसार स्वस्थ मैत्री निभायेंगे।
तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि- ‘मुझे शहर में एक नौकरी मिल गई है, मिले तो चर्चा करेंगे। ’


रोली -पिताजी, मैं कहती थी ना कि चन्दन ऐसा नहीं है । ये लीजिए पढ़ लीजिए उसका खत । (तब तक दयाल साहब अपना खत पढ़ चुके होते हैं उसे रोली को देते हुए कहते हैं तुम इसे पढ़ो।)


रोली दूसरा खत पढ़ती है-


आदरणीय दयाल साहब, चूँकि चन्दन दहेज के विलकुल पक्ष में नहीं है, और मैं भी उसकी बातों से सहमत हो गया हूँ, हमें शादी इसी शर्त पर मंजूर होगी कि आप एक पैसा दहेज न देगें।
‘देवीदीन खत्री’


पत्र पढ़कर रोली पिता की ओर देखती है।


दयाल -बेटी अब क्या इरादा है।


रोली -(शरमा कर) डैडी, कहकर उनके सीने से लग जाती है। (शादी की शहनाइयां बज उठती हैं।)



(मध्यान्तर)


सीन नं. 12


(चन्दन बीफ्रकेस लिए आफिस से घर पहूँचता है । दरबाजे पर नेम प्लेट हैं ‘चन्दल-रोली’ । चन्दन अंदर आने से पहले प्यार से उसमें उँगली फेरता है । रोली उसे चाय पकड़ाती है ।)

चन्दन -रोली हमारे विवाह को कितना समय हो गया ।


रोली -क्यों- क्या बात है ?


चन्दन -यूँ ही ! सोचता हूँ अपनी शादी के इतने दिन हो गए, न तो तुम्हें कभी कोई प्रजेंट लाकर दी और न ही कहीं घुमाने ले जा सका ।


रोली -कैसी बातें करते हो । क्या मुझे मालूम नहीं कि तुम्हारा सीमित आय में अभी यह सब संभव नहीं । अच्छा मैने कभी तुमसे शिकायत की या तुम्हें कभी ऐसा आभास हुआ ।


चन्दन -नहीं आभास तो नहीं हुआ । लेकिन मेरा भी तो कुछ फर्ज है । सुनो कल मेरी नौकरी का एक वर्ष पूरा होने जा रहा है । कल के बाद मैं रेगुलर हो जाऊँगा । सोचता हूँ एक माह की तन्ख्वाह एडवांस ले लूँ और फिर कुछ दिन के लिए कही बाहर चलें । हम भी कुछ खंडाला-वंडाला जैसा कर आएँ ।


रोली -अरे कल तो हमारी शादी की साल गिरह है । तुम आफिस से जरा जल्दी आ जाना य़ मैं तुम्हारे पसंद की खीर बनाऊंगी । फिर घूमने चलेगें ।


चन्दन -अरे वाह ! तो ऐसा करते हैं मैं कल रात के शो की टिकट लेता आऊंगा तुम खाना मत बनाना । होटल में खाएंगें और पिक्चर देखेगें, ऐश करेंगे और क्या ? (रोमांटिक स्टाइल में बोलता है ।)


रोली -ठीक है, मगर जल्दी आना ।


चन्दन -रोली, क्यों ना सेलीब्रेशन ट्रायल आज ही हो जाए ।


रोली -क्या कहा........(प्यार से आँख दिखाती है ।)


चन्दन -हाँ, हाँ, हर्ज ही क्या है ? (उसे अपनी ओर खींचता है ।)



सीन नं. 13


(चन्दन आफिस के लिए तैयार है । रोली को आवाज देता है । रोली आकर उसका टीका करती है, आरती उतारती है और पैस छूती है ।)



चन्दन -अरे, अरे ये सब क्या कर रही हो ?


रोली -इतनी जल्दी भूल गए, आज शादी की साल गिरह है ना ।


चन्दन -अरे हाँ ! तो पैर थोडी ना छूते हैं । साल गिरह के दिन गाल छूते हैं वो भी होठों से । इस तरह ........।


रोली -अच्छा आज तुम्हारी तनख्वाह मिलेगी ना । बाजार से कुछ सामान लाना है । लिस्ट मैंने तुम्हारे शर्ट की जेब में रख दी । लौटते समय लेते आना ।


चन्दन -हुजूर ! तनख्वाह तो मिलेगी, वो भी डबल । एक महीने का एडवांस । लेकिन सामान आज नही आयेगा, आज तो चन्दन हनीमुन मनायेगा अपनी हनी के साथ, नो होम-वर्क । पाँच बजे तैयार रहना । अच्छा चलूँ-बाय !

(रोली चन्दन को जाते देखती है उसकी आवाज गूँजती है –आज तो चन्दन हनीमून मनायेगा, अपनी हनी के साथ । वह शरमाती है । शीशे के सामने अपने चेहरे को देखते हुए कुछ गुनगुनाती है और नहाने चल देती है ।)



सीन नं – 14



(चन्दन कार्यालय में बैठा फाइल देख रहा है । तभी आफिस का कैशियर आकर उसकी टेबल पर एक लिफाफा रखता है ।)


कैशियर -चन्दन जी ये रही आपकी दो माह की पगार, और यहाँ साइन कर दीजिए ।


चन्दन -दो माह की । लेकिन अभी तो मैंने एडवांस की एप्लीकेशन भी नहीं दी । अच्छा-अच्छा मैंनेजर साहब से बात की थी उन्होनें ग्रांट कर दिया होगा। (खुश हो जाता है।)


कैशियर -जी नहीं ! ये आपकी आखिरी तनख्वाह है। आपकी छंटनी कर दी गई है और कंपनी के नियम के मुताबिक यदि किसी कर्मचारी की छंटनी कंपनी बगैर नोटिस दिए करती है तो उसे एक माह की तनख्वाह और दी जाती है।


चन्दन -मेरी छँटनी......लेकिन क्यों ? (चकरा जाता है)


कैशियर -ताकि आप कनफर्म न हो सकें । क्योंकि यदि आप कनफर्म हो गए तो कम्पनी को नियम के मुताबिक अन्य सुविधायें मसलन-एल.टी.सी., इन्क्रीमेंट, बोनस, मेडिकल फैसीलिटी वगैरह देनी पड़ेगी।


चन्दन -ये तो सरासर अन्याय है, मैं मैनेजर साहब से मिलता हूं। (चन्दन तेजी से मैनेजर साहब के कमरे में घुसता है लेकिन लौटता है तो चेहरे पर पसीने की बूंदे है। वह धीरे-धीरे अपनी टेबल तक पहुँचता है। लिफाफा अपने ब्रीफकेस में रखता है फिर एक भरपूर नज़र आफिस में चारों तरफ डालता है और चला जाता है।)

उदास चन्दन सड़क में यूँ ही टहलता रहता है फिर एक होटल में जाता है और चाय का आर्डर देता है। उसके कानों में रोली की आवाज सुनाई पड़ती है।


“आज शादी की साल गिरह है.....जल्दी आना। आज तो पगार मिलेगी....ना...पगार मिलेगी ना......जल्दी आना......साल गिरह .....पगार...जल्दी आना .....”


वह सिर झटकता है, एक सिगरेट सुलगाता है और चेहरे पर एक मुस्कान लाकर एक साड़ी की दुकान पर पहुँचता है। साड़ी लेकर बाहर आता है तो एक भिखारी उससे कहता है “अल्लाह आपकी नौकरी में बरक्कत दें ।” चन्दन उसे घूर कर देखता है फिर न जाने क्या सोच तक कुछ पैसे दे देता है। घड़ी की ओर नजर उठाता है और टैक्सी को आवाज देता है। टेक्सी में चढ़ते समय एक वेणी वाली आ जाती है तो एक वेणी लेकर बैग में रख लेता है। दरवाजे पर रोली को गुड़िया की तरह सजा देखकर उदास चन्दन, मुस्कुराने लगता है। फिर टैक्सी से उतरे बैगर, ब्रीफकेस उस थमा कर कहता है- “जल्दी ताला लगा कर वर्ना पिक्चर नहीं मिलेगा। ”

(पिक्चर देखने के बाद रोली कहती है-अब ।)

चन्दन -अब क्या ! डिनर इन कैंडल लाइट ।(दोनों हँसते हैं। रेस्त्रां में डांस हो रहा है। चन्दन कभी-कभी सीरियस हो जाता है।)


चन्दन -यदि लार्डशिप की इजाजत हो तो बन्दा एक पैग चढ़ाले।


रोली -मगर क्यों ?


चन्दन -क्योंकि...क्योकिं बन्दा आज....... बहुत खुश है।


रोली -इजाजत है मगर केवल एक।

(खाना खाकर दोनों घर पहुँचते हैं। चन्दन बैग खोलकर रोली को साड़ी देता है, ये रही मेरी सी भेंट साल गिरह की। फिर बेणी जूड़े में लगाकर और ये रही पति की भेंट पत्नी को-सदा इस वेणी की तरह महको। रोली जाने लगती है तो लिफाफा देकर कहता है और यह रही लक्ष्मी, गृहलक्ष्मी के लिए ।)

रोली -अरे वाह, ढेर लगा दिया उपहारों के।


चन्दन -अरे अभी असली उपहार तो दिया ही नहीं, जरा चेन्ज करके तो आओ ।


रोली -शैतान....(थोड़ी देर में कपड़े बदलकर आती है।) चन्दन, तुम साड़ी लाये, शाम से इतना खर्च किया लेकिन तुम्हारी पगार का लिफाफा अभी भी भारी है। लगता है एडवांस मिल गया ।

चन्दन बिस्तर पर लेटा है उसे कैशियर की आवाज सुनाई पड़ती है- ‘ये रही आपकी दो माह की पगार । कम्पनी का यह नियम ......’


दूसरी ओर रोली की आवाज आती है-चलो अच्छा हुआ एडवांस ले लिया । अब कुछ दिन की छुट्टी ले लो तो डैडी, व पापा दोनों को देख आएँ।’


चन्दन (बिस्तर पर ठंडी सांस लेकर धीरे से बड़बड़ाता है) अब तो छुट्टी ही छुट्टी है। (रेडियो का स्विच आन करता है तो गाना आ रहा है- दिल जलता है तो जलने दो .....)

रोली आकर उसके बगल में लेट जाती है । उसकी ओर देखकर मुस्कुराती है चन्दन भी जबरन मुस्कुराता है और उसे बाहों के घेरे में ले लेता है।



सीन नं. 15


(सुबह-सुबह चन्दन ‘वैकेन्सी’ कालम पढ़ रहा है, रोली चाय लेकर आती है तो चन्दन पृष्ठ बदल देता है।)

रोली -9 बज गए सरकार ! आफिस नहीं जाना क्या ?


चन्दन -आफिस....हाँ जाना क्यों नहीं। (बाथरूम की तरफ बढ़ता है,लौटता है तो रोली अखबार देखकर बोलती है।)


रोनी -चन्दन ये न्यूज तुमने पढ़ी !


चन्दन -कौन सी ?


रोली -एक आदमी ने बेरोजगारी से तंग आकर अपनी पत्नी को जहर देकर आत्महत्या भी कर ली।
(चन्दन तौलिए से सिर पोंछता-पोंछता रुक जाता है।)


रोली -इंसान को परिस्थितियाँ कितना कमजोर बना देती है !


(थोड़ी देर बाद जाने लगता है।)


रोली -क्या बात है ! आज बगैर बैग लिए ?


चन्दन -अरे, लाओ जल्दी ! मैं तो भूल गया था।


(चन्दन बैग लेकर निकलता है, दिन भर नौकरी के चक्कर में इधर-उधर भटकता है और शाम को घर ऐसे पहुँचता है जैसे आफिस से लौटा हो। ) ऐसी ही एक सुबह :


चन्दन -रोली जरा मेरी सर्टीफिकेट की फाइल तो निकाल देना ।


रोली -क्यों ? क्या कहीं और अप्लाई कर रहे हो। ये नौकरी अच्छी नहीं लग रही।


चन्दन -(घबराकर) नहीं, अच्छी तो है .......! फिर (मुस्कुराकर) तुम्हीं तो कहा करती हो कंम्पटीशन मेंबैठकर देखो । मैं भी सोचता हूँ हर्ज क्या है ? अच्छा चलूं देर हो रही है। (जाता है)



सीन नं. -16


(एक सुबह चन्दन तैयार होकर निकलने को होता है कि रोली पूछती है चन्दन तुम्हारे पास कुछ रुपये होंगे)

चन्दन -जेब टटोल कर....आज तो नहीं। तुम ऐसा करो बैंक से निकाल लेना।


रोली -यह तो गलत है । हम बैक में पैसे बुरे वक़्त के लिए रखते हैं इस तरह निकाल लेगें तो .....।
चन्दन -(धीरे-से अब और कौन सी मुसीबत होगी (फिर रोली से) अरे तुम निकाल लो इस बार....तनख्वाह मिलेगी तो ...ब्याज सहित भर दूँगा ।


(रोली मुस्कुराती है) फिर कहती है ‘अच्छा तुम दस मिनट रूक नहीं सकते ।’


चन्दन -क्यों ?


रोली -कुछ नहीं, बाजार से कुछ सामान लेना है। तुम्हारे साथ चलती तो तुम्हारे आफिस के पास उतर जाती और शापिंग कर लेती।


चन्दन -(घबराकर) नहीं, तुम अकेली चली जाना। मुझे आज जल्दी पहुँचना है।

(चन्दन जाता है, थोड़ी देर बाद रोली भी निकलती है। दोपहर को सिटी बस से आ रही होती है तो पार्क में चन्दन जैसा एक व्यक्ति बैठा दिखाई पड़ता है । वह आश्चर्य से घड़ी देखती है। शाम को जब चन्दन घर आता है तो चाय देते समय वह उसे पुछती है-चन्दन तुम आफिस से कितने बजे छूटते हो।

चन्दन -5 बजे, क्यों ? (उसके चेहरे पर शिकन)


रोली -कुछ नहीं, सोचती हूँ दिन भर अपनी कुर्सी में बैठे-बैठे ऊब नहीं जाते ? कहीं बाहर नहीं जाते ?


चन्दन -ना बाबा ना ! कुर्सी छोड़ना मुश्किल हो जाता है और आज तो लंच के लिए भी नहीं उठ पाया ।
रोली (-मन में) वो कोई और होगा . (फिर चन्दन से ) अच्छा चलो धूम आते हैं ।


चन्दन -(अपने से) सारा दिन तो घूमता हूँ (फिर रोली से) चलो। (बाजार में अचानक मिर्जा मिल जाता है, दोनों गले मिलते हैं।)


मिर्जा -घूमने जा रहे हो।


चन्दन -हाँ....ऐसे ही, आओ तुम भी।


मिर्जा -ना बाबा- दाल बात में मूसर चंद नहीं बनना ।


(तीनों हँसते हैं) भई शादी के बाद आज पहलीबार मिले हो और आज ही मेरी ‘बिखरी नज्में’ छप कर बाजार में आई है इस खुशी में आओ एक-एक काफी हो जाये।


चन्दन -मुबारक हो, मगर ........


मिर्जा -मगर-वगर कुछ नहीं, अब चल सीधे । आइये भाभी, तीनों होटल में जाते हैं। (होटल के बाद)


मिर्जा -अच्छा चलें


रोली -कभी घर आइये ना ।


चन्दन -हाँ यार ! एक ही शहर में रह कर तू....कल आ ।


रोली -ऐसे नहीं ! रात का खाना भी साथ खाएंगे ।


मिर्जा -अच्छा, शनिवार की शाम आता हूँ । (विदा)



सीन नं. -17



(रात को सोते समय रोली हो रह-रह कर पार्क में बैठा आदमी दिखाई देता है। दूसरे दिन चन्दन के जाने के बाद वह घर से निकल कर एक पब्लिक बूथ सो चन्दन के कार्यालय में टेलीफोन करती है।

रोली -मैं मिस्टर खत्री से बात करना चाहती है।


उधर से मिस्टर खत्री! ऐसा तो कोई आदमी हमारे यहाँ नहीं है ।


रोली -आप ‘राहुल कंस्ट्रक्शन’ से बोल रहे हैं ना । वो आपके यहाँ असिस्टेंट हैं, चन्दन खत्री ।


उधर से -माफ कीजिएगा, चन्दन खत्री पहले काम करते थे मगर उनकी कभी की छँटनी हो चुकी है ।


रोली -छँटनी ?


उधर से -जी हाँ उन्हें दो माह की पगार देकर अलग कर दिया गया है ।



(रोली के हाथ से टेली फोन छूट जाता है । किसी तरह वह घर पहुँचती है । रह-रह कर उसे टेलीफोन की आवाज़ सुनाई पड़ती है – ‘उनकी तो कभी की छँटनी हो गई ।’ वह कभी बैठती है, कभी लेटती है फिर टहलने लगती है ।) स्वतः बड़बड़ाती हैः

यह तुमने क्या किया चन्दन ? इतनी बड़ी लड़ई अकेले लड़ रहे हो और मुझे खबर तक नहीं । मुझ पर कुछ तो भरोसा किया होता, हम दोनों मिल कर लड़ते । अब क्या करूँ ! कैसे तुम्हारी परेशानी हल करुँ ? नौकरी करुँ । तभी चन्दन के शब्द गूँजतें हैं- ‘नारी को घर में रहना चाहिए ।’ तुम्हें वह पसंद कहाँ है ? अगर तुम्हें पता चल गया कि मैं नौकरी करती हूँ तो तुम्हारे स्वाभिमान को चोट लगेगी । तो क्या करूँ ? फिर कुछ निश्चय कर अखबार देखने लगती है । कुछ नोट कर अपने पर्स में रख लेती है ।


सीन -18



अब चन्दन के बाद रोली भी सुबह निकल कर दफ्तरों के चक्कर लगाने लगती है।एक सुबह लैयार होता है तो रोली को आवाज देकर कहता है- ‘आज सटर्डे है- मिर्जा आयेगा ।’

रोली -अरे हाँ- मैं तो भूल ही गई थी ।


चन्दन -बाजार से कुछ लाना है ।


रोली -नहीं घर में सब है । हाँ तुम लोग कुछ लोगे तो ले आना । (अचानक उसे याद आता है कि जन्दन की जेब तो खाली होगी ।) सुनो ! कल मैं तुम्हारी आलमारी साफ कर रही थी तो तुम्हारी किसी पैंट से कुछ रुपये गिर पड़े । तुम कितने लापरवाह हो, अभी लाकर देती हूँ ।



(अन्दर जाती है और चुपके से अपने आरनामेंट बाक्स से कुछ रुपये लाकर उसे देती है ।)

(चन्दन उससे वगैर निगाह मिलाए चला जाता है । घर से निकलकर वह सीघी पोस्ट आफिस जाता है । कुछ लिफाफे व पोस्टल आर्डर व पोस्टल आर्डर खरीदता है । फिर अखबार निकालकर अर्जी लिखने लगता है । शाम जब घर पहुँचता है तो मिर्जा बैठा मिलता है ।) उसे देखते ही चन्दन चेहरे में मुस्कान लाकर कहता है – “क्यों बे भूख, सुबह से आ गया था क्या” दोनों हँसते हैं । चन्दन ड्रिंक्स निकालता है रोली खाना लगाती है । हँसी मजाक के बीच खाना खत्म होता है तथा मिर्जा अपनी पुस्तक से एक नज़्म पढ़ता है –

“जीवन की आपाधापी में,
जब पड़ते तब उल्टे मोहरें
आशाओं के अड़ियल छौने,
तपती रेती में कब ठहरे ।
स्मृति का यह दंश अनुठा,
पैठ चुका है, उतना गहरे ।
सपनों को सौगंध दिलाई,
साँसों पर बैठाये पहरे ।
नोच दिए मन के डैने पर,
विस्मृति कब हो पाये चेहरे ।।”

(नज़्म सुन कर माहौल थोड़ा बोझिल हो जाता है । तीनों अपने-अपने ग़मों में ! मिर्जा उनेहें पुस्तक भेंट कर चला जाता है ।)


सीन नं. 19



(प्रतिदिन की तरह चन्दन के घर से निकलने के बाद उसे दिन भी रोली नौकरी की तलाश में निकलती है । और आज उसे उद्योग विभाग में नौकरी मिल जाती है ।)


अब रोली रोज-रोज चन्दन को विदा कर अपनी नौकरी में जाने लगती है और उसके लौटने के पूर्व घर आ जाती है। धीरे-धीरे एक माह और गुजर जाता है। रोली को पहली पगार मिलती है। शाम को चन्दन के घर आने पर –



रोली -आज मैं बहुत खुश हूँ चन्दन ।(चाय देती है।)


चन्दन -अच्छा-क्या बात है ?


रोली -पिछले माह मैंने लाटरी के दो टिकटें खरीदी थीं एक में आज इनाम निकला है-पूरे एक हजार रुपये का।


चन्दन -क्या ?


रोली -जी हाँ एक हजार रुपये । मगर तुम बड़े लकी हो ।


चन्दन -लकी और मैं ?


रोली -हाँ ! इनाम तुम्हारे नाम पर ली गई टिकट पर ही निकला है। पर्स से रुपये निकाल कर । ये रहे आपके रुपये


चन्दन -लेकिन....तुम्हारीं रखो।


रोली -ठीक है तुम्हारी तरफ से घर खर्च के लिए रख लेती हूँ । तुम तनख्वाह से जो मुझे घर खर्च देने वाले थे वह मुझे न देकर इस माह बैंक में डाल देना-ठीक।


चन्दन -बिल्कुल ठीक। (चन्दन राहत की साँस लेता है।)


रोली -(सौ रुपये निकाल कर) अच्छा लो इसे रख लो।


चन्दन -क्यों ?


रोली -अरे भाई इनाम का कुछ शेयर तो रखो। जबरन रुपये उसकी जेब में डाल देती है।


चन्दन -कोई लेटर नहीं आया रोली !


रोली -नहीं तो-कोई आने वाला था क्या ?


चन्दन -नहीं, बस ऐसे ही।


सीन नं. -20



(पार्क में रोली व चन्दन बैठे हैं।)



रोली -एक बात पूछूँ, बुरा तो न मानोगे।


चन्दन -कैसी बातें करती हो, बोलो।


रोली -अगर तुम्हारी इजाजत हो तो मैं भी कहीं नौकरी करने लगूँ।


चन्दन -मेरे होते हुए तुम्हें नौकरी की क्कया जरूरत ? क्यों, घर खर्च मेंकुछ परेशानी है ?(अब उसकी आवाज में दम न था।)


रोली -नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं ? बस बैठे-बैठे बोर हो जाती हूँ ।


चन्दन -नहीं रोली ! मैं इस, पक्ष में नहीं हूँ और मैं जानता हूँ महिलाओं को लोग दफ्तर में किस निगाह से देखते हैं, उनका कितना शोषण होता है। तुम घर में बैठी कुछ लिखा-पढ़ा करो सारी बोरियत दूर हो जायेगी । (वह फिर अपनी पर आ गया)


रोली -अच्छा चन्दन, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तुम कोई उद्योग घंधा शुरू करो – अपना उद्योग । सुना है आज कल सरकार इसके लिए लोन भी देती है।


चन्दन -हाँ देती तो है मगर उसमें बड़ी दिक्कतें हैं।


रोली -दिक्कतें ! अरे हाँ, यदि आया । लोन तो बेरोजगार युवकों को ही दिया जाता है तुम्हें कैसे मिल पायेगा । तुम तो इम्पलाइड हो, है ना ! (कनखियों से उसकी ओर देखती है।)


चन्दन -वही तो। (चन्दन नजर नहीं मिलाता।)


रोली -और लगी लगाई नौकरी छोड़ना तो बेवकूफी होगी। जाने दो, मैं भी कहाँ बे सिर-पैर की बातें लेकर बैठ गई । (फिर थोड़ा रूक-कर ।) लेकिन रहता बड़ा मजा, यदि तुम्हारा अपना कोई रोजगार होता तो तुम उसमें मुझे भी सहायक बना लेते । फिर दोनों मिलकर वह स्कीम बनाते कि अपना बिजनेस टाप पर होता औरर तुम लात मार देते इस नौकरी को –है ना।


चन्दन -(धीरे से मुस्कुराता है, फिर भावुक होकर) रोली सच में मैं तुम्हें कुछ न दे सका । तुम्हें महल से लाकर झोपड़ी में डाल दिया । बड़े ऊँचे इरादे थे लेकिन वक़्त के आगे कुछ नहीं चली । सदा ही तुम्हें अभावों में रखा पर तुमने उफ तक नहीं की। आज तक कभी अपने घर, अपने ऐश्वर्य की चर्चा तक जुबां पर न लाई । शायद इसलिए कि मुझे बुरा लगेगा। मैंने तुम पर बहुत अन्याय किया है रोली।


रोली -तुम ऐसा क्यो कह रहे हो ? समझते हो। अरे तुम्हें पाकर तो मैं निहाल हो गई, चन्दन । मैंने केवल तुम्हें चाहा था-कोई ऐश्वर्य नहीं । मुझे तुम मिल गए-सारा जहाँ मिल गया। चन्दन ऐसा कभी मत सोचना ....रोली –चन्दन को अलग मत समझना। (इतना कहते-कहते वह उसके पंधे पर सिर रखकर सिसकने लगती है।)

घर आकर दोनों अपने पलंग पर लेटते हैं। तो धुन सुनाई देती है-

‘जो तुमको है पसंद ,वही बात करेगें......।’



सीन नं.-21



(सुबह चन्दन उठता है तो टेबल के ऊपर अखबार के साथ ‘रोजगार समाचार’ देखकर रोली को आवाज देता है- ये रोजगार समाचार कौन मँगाने लगा?)

रोली -(अन्दर से) अरे वो कल बाजार से कुछ सामान लाई थी । दुकानदार ने सामान उसी में लपेटकर दे दिया था ।

चन्दन चिढ़कर उसे फेंकता है । सीलिंग फैन की हवा से उसके पन्ने-पन्ने अलग हो जाते हैं । एक पेज असके सामने गिरता है जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा है-‘प्रदेश के शिक्षित बेरोजगारों को विशेष प्रोत्साहन’ चन्दन उसे उठाकर पढ़ने लगता है –


‘जरूरत मंद बेरोजगार नवयुवको के लिए सुनहरा अवसर । सरकार ने यह तय किया है कि जो नवयुवक किसी नये उद्योग को आरंभ करने में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें सरकार उचित मार्गदर्शन एवं आसान तरीके से ‘स्वरोजगार योजना के तहत’ न्यून ब्याज दरो पर ऋण उपनब्ध करायेगी । नवयुवक अपनी योजना के साथ अपने जिला उद्योग विभाग से संपर्क करे ।’


चन्दन को शाम को शाम की रोली बात याद आती है-क्या ही अच्छा होता कि तुम्हारा अपना कोई उद्योग होता। आज कल सरकार उसके लिए ऋण भी देती है।.....लेकिन तुम बेरोजगार नहीं हो यह स्कीम तो.....


चन्दन -(बड़बड़ाता है) नहीं, मैं भी बेरोजगार हूँ । और इधर-उधर देखकर पेपर जेब में रख लेता है।

रोली जो चुपचाप पर्दे के पीछे से यह सब देख रही होती है एक निश्चिंतता की सांस लेकर अंदर चली जाती है । फिर चन्दन का टिफिन लाकर देती है। चन्दन सदा की भांति उसे लेकर जाता है तो रोली देर तक उसे देखती रहती है। फिर आफिस जाने की तैयारी में जुट जाती है।



सीन नं. 22



(अचानक चन्दन रोली के दफ्तर में पहुँचता है। रोली उसे देखकर छुप जाती है। चन्दन कुछ देर केंद्र निदेशक के कमरे में रूक कर चला जाता है। रोली अपनी सीट पर बैठती है तो चपरासी आकर कहता है कि उस साहब बुला रहे हैं। रोली साहब के चेंबर में घुसती है।)

रोली -यस सर !


निदेशक -रोली जी, अब तक कितनी अर्जियाँ, अपने पास आ चुकीं ?


रोली -जी करीब 200, जिनमें से आपने 50 केस सेलेक्ट किए हैं।


निदेशक -अच्छा ये एक और एप्लीकेशन उन्हीं में लगा जीजिए । बड़ी अच्छी योजना लेकर आया था । प्रतिभाशाली दिखता है। एम. कॉम फर्स्ट क्लास है, पर बेरोजगार । आजकल के युवकों में न जाने क्यों नौकरी का इतना भूत सवार रहता है। अरे यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट तो इतनी अच्छी बनाई गई है कि कोई भी मेहनती युवक इससे लाखों कमा सकता है।


आप वो फाइल मुझे दे दीजिए । हेड आफिस की मीटिंग में ये सारे केसेंस फायनल होना है मैं अभी जाऊँगा।


रोली -जी ! सर क्या इसी माह में इनका निर्णय आ जाएगा।


निदेशक -निर्णय ! अरे एक तारीख से इन्हें अपना प्रोजेक्ट आरंभ कर देना चाहिए । तुम्हें मालूम नहीं, मुख्यमंत्री इसमें कितना व्यक्तिगत इन्ट्रेस्ट ले रहे हैं। प्रोग्रेस रिपोर्ट हर माह उनके पास जाती है।

इससे बेहतर और क्या हो सकता है। जिनती मेहनत करो उतना लाभ कमाओ और नौकरी में....हूँ हं । 15 वर्ष से मैं उसी पोस्ट पर घिसट रहा हूँ और आगे भी कोई ठिकाना नहीं है। घिसी-पिटी लीक पर ही कलम रगड़ते रहना है। अपनी प्रतिभा-टेलेन्ट का कोई उपयोग नहीं । और इस योजना में भरपूर मौका मिलता है अपने दिमाग का उपयोग करने व उससे लाभ उठाने का । इससे इंसान में आत्म विश्वास बढ़ता है। कुछ कर गुजरने की आकांक्षा रखने वाले अपने सपने साकार कर सकते हैं। सिर्फ यही नहीं इससे देश की प्रगति में भी वे सहायक होते हैं, ऐसे नवयुवक एक आदर्श स्थापित बन सकते हैं। शासन की यह नीति यकीनन सराहनीय है जिसने नवयुवकों के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया है।



सीन नं. -23



(रोली आफिस से निकलकर सीधी मंदिर में जाती है। वहाँ आरती हो रही है । वह चुपचाप खड़ी रहती है। पुजारी प्रसाद देता हैउसे लेकर घर आती है। तो देखती है कि चन्दन आ चुका है। उसे देखकर वह थोड़ा सकपकाती है।)

चन्दन -कहाँ गई थीं, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।


रोली -जरा-मंदिर चली गई ती । लो प्रसाद खा लो ।( प्रसाद देती है।) बैठो मैं अभी तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ ।



सीन नं. -24



कुछ दिनों बाद । एक सुबह पोस्टमैन चन्दन को रजिस्ट्री लाकर देता है चन्दन उसे पढ़कर । खुशी से चीख उठता है-


रोली मेरा लोन पास हो गया है। तुम्हारा सपना साकार होने का वक्त आ गया । हमारा अपना उद्योग होगा....’ ‘रोली इंटरप्राइजेज’


(रोली आटा लगे हाथों से अंदर से दौड़ कर आती है।)

रोली -पर तुम्हारी नौकरी ?


चन्दन -न....नौकरी ।(हिचकिचाता है) अरे लोगी मारो नौकरी को । तुम जल्दी से चाय पिलाओ मुझे अभी जाना है। उद्योग विभाग।


रोली -अच्छा सुनो ! उधर जा रहे हो तो मेरा भी एक काम कर देना । अभी आयी । (थोड़ी देर में अन्दर से एक पत्र लाकर देती है) इसे तुम उसी आफस में दे देना।


चन्दन -उसी आफिस में ! (चौंकता है।) (फिर लिफाफा खोलकर पढ़ता है जो रोली का नौकरी से स्तीफा होता है। )रोली ये तुम ...नौकरी ...मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा ।


रोली -हाँ चन्दन ! लेकिन कभी इसलिए नहीं पूछा कि तुम्हारे स्वाभिमान को ठेस न पहुँचे।


चन्दन -लेकिन अब यह स्तीफा !


रोली -बस चन्दन ! मैं अब मुक्त हुई। गृहस्थी की लड़खड़ाती गाड़ी को पटरी पर बनाये रखने के लिए मुझे जो भी उचित एवं आवश्यक लगा वही मैंने किया अब इसकी जरूरत नहीं है ।


चन्दन -तुम कितनी महान हो रोली ! मैं ही गलत था। नारी को गृहस्थी की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए आवश्यकता पड़ने पर घर के बाह कदम रखना पड़े तो उसे गलत नहीं समझना चाहिए । मुझे माफ कर दो रोली ।


रोली -नहीं चन्दन ! कैसी बातें करते हो । मगर हाँ, तुमसे एक शिकायत आवश्यक है-तुमने अगर मुझसे अपनी छंटनी की बात न छुपायी होती हो शायद हम दोनों मिलकर और आसानी से इस समस्या का हर निकाल लेते । चूंकि हम दोनों इस मुश्किल से एक दूसरे से छुपा कर अलग-अलग जूझते रहे, इसलिए हमें देर लगी । वर्ना शायद निदान शीघ्र एवं बेहतर मिलता और दोनोंको इतनी मानसिक यातना ना झेलनी पड़ती ।पति-पत्नी को एक –दूसरे के सुख-दुख, में समान रूप से साझी होना चाहिए । किंतु तुमने मुझे केवल सुख का ही साथी माना, यही दुःख है।


चन्दन -तुम ठीक कहती हो। गृहस्थी की गाड़ी सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों पहियों का साथ-साथ रहना व चलना जरूरी है।


रोली -चन्दन पता है तुमको यशोधरा को सिद्धार्थ से सबसे बड़ी शिकायत क्या थी ?


चन्दन -क्या ?


रोली -कि वह उससे कह कर क्यों नहीं गए ?


चन्दन -आई एम सारी रोली ! (उसे गले लगाता है।)

पीछे सूरज उदय होता हुआ दिखाई पड़ता और चन्दन-रोली एक दूसरे का हाथ पकड़े जाते हुए दिखाई देते हैं।

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