Sunday, December 24, 2006

विक्रमादित्य, आई.ए.एस.


आधी रात का वक्त था। वीरान सड़क पर एक रिक्शा अकेला घिसटता हुआ जिला अस्पताल की ओर चला जा रहा था। रिक्शे में एक अधेड़ औरत बच्चे को सीने से लगाये बैठी थी। उसके चेहरे की अधीरता से लग रहा था कि बच्चा काफी बीमार है, जिसे वह बीच-बीच में टटोल लेती थी औरत के पहनावे से उसकी दयनीय स्थिति साफ झलक रही थी। रिक्शा मेन गेट के सामने रूक गया । रूकते ही वह लपक कर गेट के अंदर जाने को हुई, लेकिन अस्पताल के चौकीदार ने उसे रोक लिया ।

औरत - (गिड़गिड़ाते हुए) भइया मेरा बच्चा बीमार है, मुझे अंदर जाने दो ।

चौकीदार - अस्पताल बन्द हो चुका है, कल आना ।

औरत - (सिसकते हुए) मेरा एक ही बच्चा है और कल से दूध नहीं पिया। तेरे बच्चा जियें, ज़रा डाक्टर को दिखा लेने दे।

चौकीदार - अरे, सारे डॉक्टर चले गए। इमरजेंसी में एक है जो सो रहा होगा । उसे छेड़ना ठीक नहीं है। माई, तू तो सुबह आना ।

औरत - बेटा, तेरे हाथ जोड़ती हूँ, मुझे अंदर जाने दे। इसकी हालत बहुत खराब है। (बच्चा हिचकी लेता है।)

चौकीदार - (झुँझला कर नहीं मानती, तो जा।

औरत लगभग दौड़ती हुई अंदर घुसती हैऔर सामने बने ड्यूटी-रूम, जहाँ से मध्यम प्रकाश आ रहा था, के पास रूक जाती है। थोड़ा हिम्मत जुटाती है, फिर बड़ी ही नरमी से आवाज़ देते हुए दरवाजा धीरे से खटखटाती है । थोड़ी देर में अंदर से अलसाई सी आवाज आती है।

आवाज -कौन है, आधी रात को ?

औरत -साहब, मेरा बच्चा बहुत बीमार है थोड़ा देख लेते......(बात पूरी होने न पाई थी कि- वही आवाज़- ‘कल आना, अभी अस्पताल बंद हो चुका है’, आती है।)

औरत -हुजूर, रहम करें । शायद यह कल का इतजार नहीं कर पायेगा। (सुनकर एक डॉक्टरनुमा व्यक्त बाहर निकलता है।)

वही व्यक्ति-(गुस्से से) तो मैं क्या करूँ। कोई ठेका ले रखा है आधी रात को हर किसी को देखने का।
औरत - जरा सा हाथ लगा दीजिए साहब । शायद आपके हाथों का ही यश लिखा हो।

डॉक्टर -(उत्तेजित होकर), कह दिया ना, सुबह आना । 8 बजे ‘आउट- डोर’ खुलता है। (दरवाजा बंद हो जाता है।)

थोड़ी देर तक बंद दरवाजे की ओर निहारने के बाद औरत हताश सी भारी कदमों से बाहरी दरवाजे की ओर बढ़ने लगती है। कमरे से डॉ. साहब व एक नारी के खिलखिलाने की आवाज सुनाई देती है।
(धीरे-धीरे रोशनी बढ़ती है और कमरा साफ दिखने लगता है।) नारी स्वर-कौन था?

डॉक्टर -था नहीं, थी । पता नहीं कहाँ-कहाँ से चले आते हैं अपने बाप का घर समझ कर । हूँह । लड़का बीमार है। अभी पूछो पैसे हैं गाँठ में, तो मुँह बन जाएगा। आँसू टपकाने लगेंगे । सरकारी अस्पताल है ना ! तनख्वाह क्या मिलती है इनके 24 घंटे के गुलाम हो गए। प्राइवेट क्लीनिक में जाएँ तो पता चले।

नारी -छोड़ो भी, क्या छोटी-छोटी बातों में ध्यान देते हो । ऐसे कितने ही दिन भर आते और चले जाते हैं। डॉक्टर होकर भावुक होते हो,छिः । मैं तुम्हारे लिए काफी बनाती हूँ । (इतने में बाहर किसी कार के रूकने की आवाज सुनाई पड़ती है।)

डॉक्टर -लो, अब कोई कुबेर पुत्र आ टपका। अभी कहेगा-चाहे जितना रुपए ले लीजिए, मेरे बच्चे या बीबी को बचा लीजिए। जैसे में डॉक्टर न हुआ....और यह चपरासी का बच्चा भी फटाक से गेट खोल देता है। तुम लाईट गुल कर दो मैं थोड़ा आराम कर लूँ।

(लाईट बंट हो जाती है । फर्श पर भारी कदमों की आवाज सुनाई देती है। एक सुदर्शन व्यक्ति धवल कुर्ते पैजामें में सुधड़ महिला के साथ आता दिखाई देता है। इस महिला की गोद में एक बच्चा है जिसे वह रह-रह कर संभाल रही है। नवयुवक चलता हुआ ड्यूटी रूम के पास रूकता है।)

नवयुवक - (दरवाजे पर थपकी देकर) डॉक्टर साहब। (कुछ रुककर जरा जोर से) डॉक्टर साहब ।

( कोई आवाज नहीं आती)

नवयुवक - (चखकर) क्या अस्पताल है ? ड्यूटी पर कोई भी नहीं... किसकी ड्यूटी है यहाँ ? टेलीफोन कहाँ है ?

(आवाज सुनकर वही डॉक्टर भड़ाक से दरवाजा खोलता है और उस नवयुवक की ओर घूर कर देखता है।)

डॉक्टर - क्या बात है ? इतना क्यों चीख रहे हो ?

नवयुवक - मैं इतनी देर से आवाज लगा रहा हूँ कोई जवाब क्यों नहीं देता। आप यहाँ ड्यूटी करने आए हैं या सोने के लिए ?

डॉक्टर - इस तरह चीखने की जरूरत नहीं है यह सरकारी अस्पताल है, कोई तुम्हारा घर नहीं। रूआब तो ऐसे दिखा रहे हो जैसे कलेक्टर हो । (इतना कह कर वह अंदर की ओर मुड़ने लगता है तभी उसे आवाज़ सुनाई पड़ती है)

नवयुवक - जी हाँ। मैं इस शहर का कलेक्टर विक्रमादित्य हूँ । शायद आप मुझे नहीं पहचानते ।

डॉक्टर - (हड़बड़ाकर ) जी ...जी...

नवयुवक जी। लाइये जरा अपना ड्यूटी रजिस्टर । मैं अपने आने का सबब तो लिख दूँ ।

डॉक्टर - सर ! सर ! मैं ड्यूटी....

नवयुवक - शट-अप । यही आपकी ड्यूटी है। मरीजों के साथ ट्रीटमेंट है ! यही सौगंध खाई थी आपने डिग्री लेते समय !!

डॉक्टर - (निगाहें नीचे झुकाते हुए) मुझे क्षमा करें सर ।

नवयुवक - लाईये रजिस्टर मुझे दीजिए और आप इस बच्चे को देखिये । जल्दी कीजिये ।

डॉक्टर बच्चे को देखता है, हड़बड़ाहट में इंजेक्शन निकालता है तो एक शीशी गिरकर टूट जाती है। अंदर वाली महिला, जो नर्स थी, तब तक ड्रेस में आ जाती है। डॉक्टर एक इंजेक्शन लगाता है। बच्चा रोता है जिसे डॉक्टर बहलाने का प्रयास करता है। अब तक नवयुवक रजिस्टर में अपना नोट लगा कर बाहर की ओर चल पड़ता है। गेट पर वही पहले वाली औरत सर झुकाये बैठी है। नवयुवक की पत्नी वह बच्चा उस औरत को देते हुए कहती है-

‘लो माँ, अब यह बच्चा बिल्कुल ठीक है। कल फिर यहाँ आकर दिखा लेना ।’ ये रही इसकी पर्ची ।
औरत जाने क्या बुदबुदाती है। आवाज़ साफ नहीं आती किंतु आँखों से लगातार बहते आँसू सब अनकहा कह रहे थे। नवयुवक कार की ओर बढ़ते हुए पत्नी से कहता है –

“लगता है प्रातःकालीन भ्रमण से रात्रि विचरण ज्यादा आवश्यक है।” पत्नी मुस्कुराकर कहती है- ‘क्यों क्या सचमुच विक्रमादित्य बनने का इरादा है !’ तभी डॉक्टर बदहवास सा रजिस्टर लिए दौड़ता आता दिखाई पड़ता है किन्तु कार, कोहरे में गुम हो जाती है।

डॉक्टर बच्चे को महिला की गोद में दूध पीता देखकर भौंचक रह जाता है।

No comments: