माँ का टेलीफोन पाकर उसे तुरंत जाना था । मनीष को ऑफिस में सूचना भेजी तो वे स्टेशन पहुँच गए । कारण पता न होने से हम दोनों चिंतित थे । रिटायर होने के बाद पापा अस्वस्थ रहने लगे थे जिसका एक कारण छोटी बहन की शादी न हो पाना भी था । इसी के चलते अपने ऑफिस के साथी से लेकर मनीष ने दो पते मुझे एक पर्चे में लिख कर चलते समय पकड़ा दिए और कहा कि यदि सब कुछ सामान्य हो तो इन लड़कों को देख लेना, कानपुर के ही हैं ।
स्टेशन पर छोटा भाई आ गया था । रिक्शे के बजाय जब वह टैक्सी स्टैण्ड की और बढ़ा तो मन और आशंकित हो चला । भाई से पूछने पर उसने कुछ ठीक से उत्तर नहीं दिया तो वह चुप लगा गई ।
शहर से दूर जब हमारी टैक्सी एक प्राइवेट नर्सिंग होम के पास रूकी तो उसे याद आया कि यह तो उसकी माँ की सहेली का नर्सिंग होम है । माँ बाहर इंतजार में ही थी, मिलते ही सुबकने लगी । अब उसका धीरज टूट गया । उसने गुस्से से पूछा- कोई मुझे बताएगा कि आखिर हुआ क्या है ? तब माँ बड़ी मुश्किल से आँखें पोंछते हुए बोली- “क्या करुँ, छोटी अबार्शन के लिए तैय्यार ही नहीं थी ।”
अगले ही क्षण उसने चुपचाप माँ की नज़र बचा कर पर्स में रखा मनीष का पर्चा खिड़की के बाहर गिरा दिया ।
स्टेशन पर छोटा भाई आ गया था । रिक्शे के बजाय जब वह टैक्सी स्टैण्ड की और बढ़ा तो मन और आशंकित हो चला । भाई से पूछने पर उसने कुछ ठीक से उत्तर नहीं दिया तो वह चुप लगा गई ।
शहर से दूर जब हमारी टैक्सी एक प्राइवेट नर्सिंग होम के पास रूकी तो उसे याद आया कि यह तो उसकी माँ की सहेली का नर्सिंग होम है । माँ बाहर इंतजार में ही थी, मिलते ही सुबकने लगी । अब उसका धीरज टूट गया । उसने गुस्से से पूछा- कोई मुझे बताएगा कि आखिर हुआ क्या है ? तब माँ बड़ी मुश्किल से आँखें पोंछते हुए बोली- “क्या करुँ, छोटी अबार्शन के लिए तैय्यार ही नहीं थी ।”
अगले ही क्षण उसने चुपचाप माँ की नज़र बचा कर पर्स में रखा मनीष का पर्चा खिड़की के बाहर गिरा दिया ।
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