Sunday, December 24, 2006

रिवाज


बात सन् 1970 के आसपास की है। कार्यालय में मेरे सहकर्मी रमेश के विवाह की प्रथम वर्षगांठ के चंद रोज पहले उसके यहाँ बेटी पैदा हुई तो उसने दोनों अवसरों को मिलाकर एक शानदार पार्टी दी। चूँकि रमेश कर्मचारियों का नेता भी था, विभाग में अच्छा प्रभाव था। कार्यालय के सभी बढ़े अधिकारी कार्यक्रम में शामिल हुए तथा उसकी कार्य क्षमता एवं सद्व्यवहार की काफी सराहना की गई । उत्सव हुए मुश्किल से एक सप्ताह ही हुआ होगा कि एक दिन कार्यालय पहुँचा तो पता चला कि रात को रमेश की पत्नी का देहांत हो गया । हम लोग तुरन्त उसके घर रवाना हुए ।

लोग दाह-संस्कार के बाद लौटते समय मासूम छोटी-सी बच्ची के बारे में ज्यादा सोचते रहे । लेकिन एक बात और, जो शायद हम सभी को खटक रही थी वह यह कि दाह संस्कार के दौरान रमेश अनुपस्थित था । बात आई गई हो गई । तीन-चार दिन बाद अचानक जब रमेश का जिक्र आया और फिर वही बात उठी । तब उसके एक अंतरंग साथी ने बताया कि उनके यहाँ रिवाज है कि पति अगर दाह में शामिल होगा तो वह एक वर्ष तक दूसरा विवाह नहीं कर सकता ।

कहना न होगा कि रमेश का दूसरा विवाह एक वर्ष के भीतर हो गया ।

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