Sunday, December 24, 2006

खून


बात पुरानी सही, याद अभी तक ताजा है और क्यों न हो, घटना ही ऐसी थी। मेरे कार्यलय में एक खूबसूरत नौजवान ‘मंगलेश्वर’ चौकीदार के पद पर नियुक्त था।

मंगलेश्वर नया होने के कारण कम बोलता था मगर अनुशासित था । कुछ दिनों के बाद मैंने पाया कि वह अक्सर लेट आने लगा था और एक दिन तो दोपहर दो बजे के बाद आया । उस दिन मैंने उसे जमकर फटकार लगा दी। वह बगैर कुछ सफाई दिए चुपचाप सामने से हट गया ।

इस पर मेरे एक सहयोगी ने बताया कि उसकी पत्नी बहुत बीमार है और अस्पताल में भर्ती है। सुना है कि उसे खून की भी जरूरत है। सुनकर मुझे बड़ी ग्लानि हुई । मैंने उसे बुलाकर अफसोस व्यक्त किया और तुरन्त अस्पताल जाकर खून देने की पेशकश की । वो बहुत सकुचा रहा था किंतु मेरे साथ दो चार और आ गए थे अतः वह ज्यादा न बोल पाया।

अस्पाल में जब हमने संबंधित डॉक्टर से खून देने की बात कही तो डॉ. बिफर उठा । सबब पूछने पर गुस्से से मंगलेश्वर की ओर इशारा करके के बोले-कि तीन-चार बार हमने इसे खून देने के लिए कहा किन्तु इसने साफ इंकार कर दिया ।

अब चौंकने की हमारी बारी थी। खैर, हममें से एक ने खून दिया किंतु देर हो चुकी थी अतः उसकी पत्नी बच नहीं पायी ।

बाद में पता चला कि वह इसीलिए खून नहीं देना चाहता था कि पत्नी उस नापसंद थी।

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